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अकबर की धार्मिक नीति
___अकबर गुणग्राही सम्राट था । वह विधानुरागी और साहित्य प्रेमी बावशार था । पुस्तकों के प्रति उसे असीम प्रेम था । उसने सविशाल ! सुसज्जित पुस्तकालय सवाया जिसम विदाना व्दारा लिखे गये चौबीस हजार स्तलिखित ग्रन्थ संग्रहित किये । विद्वान लोग इस पुस्तकालय की श्रेष्ठ पुस्तकों को पढ़ कर अकबर को सुनाते थे । इससे अकबर ने अपनी ती! स्मरण शक्ति के कारण साहित्य, दर्शन, राजनीति, इतिहास, धर्मशास्त्री आदि का अच्छा ज्ञान प्राप्त कर लिया था । चित्रकला मैं तो उसे तरुणा वस्था से ही रुचि थी। चित्रकला विभाग का वह स्वयं निरीक्षण करता था । साक्षर न होने पर भी उसे सुलेखन कला में रूचि थी । बाल्या. वस्था से ही उसे संगीत से प्रेम था। जबल फक के अनुसार" वह संगीत की और बहुत ध्यान देता था तथा जो व्यक्ति इस सुन्दर कला को - सीखता था बधवा जानता था अकबर उन सब को सहायता प्रदान करता था ।"१६
अकबर एक नाज्ञाकारी पुक, नुग्रह शील भाई एंव पिता तथा अनुरागशील पति था । सपने परिवार के सदस्यों और सम्वन्थियों के प्रति वह अत्यन्त उबार, दयालु, तथा स्नेह पूर्ण व्यवहार करता था । वह बहुधा इस बात पर शोक प्रकट करता था कि उपने पिता का इतनी शीघ्र स्वर्गवास हो गया कि वह उनकी कोई सेवा न कर सका । अपने उदार, सरल और स्नेही स्वभाव के कारण वह अपने परिवार वालों का बड़ा लाइला था । अपनी माता का वह शान शौकत से स्वागत करता था और ! सम्मान के लिये राजमहल से कई किलो मीटर आगे बढ़कर मैट और स्वागत ! करता था । पर अपनी माता, राजमहल की अन्य बेगर्मा व गुलबदन के । प्रति विशेष प्रेम होने पर भी वह उन्न प्रशासन और राजनीति में हस्तदीप नहीं करने देता या । अकबर ने उपती थामाताओं व धाय माझ्या के
16- Ain-1-Akbart. Val. I. P. 115.
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