Book Title: Akbar ki Dharmik Niti
Author(s): Nina Jain
Publisher: Maharani Lakshmibhai Kala evam Vanijya Mahavidyalay

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Page 46
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अकबर की धार्मिक नति और अन्य विश्वास का अनूठा सम्मिश्रण था । अकबर अपने युग का अत्यन्त महत्वाकांक्षी सम्राट था । Acc-! ording to Smith · The ruling passion of Akbar was ambie tion. His Wol. rein was dedicated to conquest, *20 वह कहा करता था कि प्रत्येक सम्राट को युद्ध के लिये तैयार रहना चाहिये। और सेना को निरन्तर युद्ध कला का प्रशिक्षण देना चाहिये । युग की परम्पराओं के अनुरूप वह निरकुंश व स्वेच्छाचारी समाट था लेकिन फिर मी वह प्रजावत्सल सम्राट था । वह रात दिन प्रजा - हित के कार्यों में व्यस्त रहता था । यथापि वह मुसलमान कुल में जन्मा था तथापि उसके हृदय में दया के माव अधिक थे । प्रजा के प्रति राजा के क्या कर्तव्य है यह वह पली प्रकार जानता था । पानी की तगी के कारण फतेहपुर सीकरी में बंधाया हुवा तालाब जिसके चिन्त अब मी मौजूद है उसकी क्या लुता की साती दे रहे है । उसने हिन्दू, मुसलमान, जाति और सम्प्रदाय के भेद भाव को मिटा कर सब को समान समफा । यही कारण था कि ! उसने पृणित तीर्थ यात्रा कर व जजिया कर हटा दिये । उसने प्रजावत्सल सम्राट को रुप में तात्कालीक परिस्थितियों के प्रतिकूल तथा समाज के लिये! घातक सिद्धान्ता व रीति-रिवार्जा को चाहे वे धर्मानुमोदित ही. क्यों न हो, टा दिया । वह साधारण प्रजानों के साथ सहानुभूति रखता था तथा उनकी प्रार्थनाओं एंव शिक्याता को अनुग्रह पूर्वक सुनता था । यहां यह भी उल्लेखनीय है कि वह प्राय:प्रति दिन एक स्सा अक्सर देता था जब प्रजाजन, अमीर या सामान्त उससे पेट और बातचीत कर सके । उसका कहना था कि - यह मेरा कर्तव्य है कि सब व्यक्तियों के प्रति अच्छा व्यवहार किया जावे -"२१ इन्ही वार्ता से वह अपनी प्रजा में अधिक लोक प्रिय हो गया था । लेकिन कानून, शान्ति और प्रशासकीय 20- Buth - Akbar the great Yesul. P. 346. 21 - Ain-1-Akbart Trans, by 1.5. Jarrett Vol. III P.430 For Private And Personal Use Only

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