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अकबर की थामक नीति
__वह नमाज वीर वज़ यथा समय करता था और वजू करने से पहले कभी भी खुदा का नाम अपने मुंह से उच्चारण नहीं करता था ।११ एक बार उसने अपने प्रधान न्यायाधीश या सदर मीर अल हय को कर बब्बुल के नाम से पुकारा । परन्तु जब उसने वजु कर ली तो उससे रामा चाही और कहा कि उसके नाम में हय शब्द जुदा का पोता है । इस लिये वह वन करने से पहले इस शब्द का उच्चारण नही कर सकता था ।
जहां तक हिन्दुओं के साथ हुमायूं के व्यवहार की बात है। उसका अपने युग की परिस्थितियों के ऊपर उठना कठिन था यपपि उन दिनों की प्रचलित रीति नीति के विरुद्ध उसने इस्लाम के काफिरों पर बर याचार करने से इन्कार कर दिया फिर भी वह इसी नीति का पूरी तरह से पालन न कर सका । कतिपत मोपाल पत्र ( जिसका वर्णन । पिल पूष्ठों में किया गया है ) में वर्णित हिन्दुओं को धार्मिक स्वतंत्रता देने तथा गोहत्या पर रोक लगाने की त्या कथित वाशाबों के होते हुए मी हुमायूं ने अपनी बहुसंख्यक हिन्दू प्रजा के की - कर्म में उसी तरह के छाड़ की जिस तरह मुगलों के पहले मुसलमान सुस्तान करते थे । कालिंजर में उसने हिन्दुओं के मंपिर तोड़े । उनके पार्मिक विवार विश्वास पर चोट पहुंचाने से भी वह नहीं चुका । १२ वह अपने मास्वियों का बहुत ही पापात करता था ययपि उसकी यह नीति सदैव हानिकर सिद्ध हुई फिर भी यदि विपती हिन्दुओं से युद्ध करते समय उनकी और के किसी मुसलमान सैनिक से उसका सामना हो जाता था तो वह उस पर वार नही करता था। इस बात का प्रमाण हमें उस समय मिलता है जिस समय बहादुर शाह ( गुजरात के शासक ) ने चित्तौड़ पर वामण
११. फारिश्ता - ब्रिग्ज - भाग २ पृष्ठ १७८ १२ - र.रू. श्रीवास्तव - मुगल कालीन भारत पृष्ठ ८२.
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