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अहिंसा के आधारभूत तत्त्व
३. लोभ, स्वार्थ आदि कारणों से उस विवेक-चेतना पर मूर्छा का आवरण
आता है। ४. उस मूर्छा के आवरण को हटाया जा सकता है। ५. जातीय, साम्प्रदायिक और राष्ट्रीय भेद-रेखाओं के नीचे जो अभेद है,
मौलिक एकता है, इसका अनुभव किया जा सकता है, कराया जा
सकता है। ६. मनुष्य में अच्छाई के बीज हैं, उन्हें अंकुरित किया जा सकता है।
इन सब के लिए एक तीव्र प्रयत्न की जरूरत है। प्रस्तुत सम्मेलन उस तीव्र प्रयत्न की अभीप्सा को जगा सके तो अहिंसा का एक शक्तिशाली अस्त्र के रूप में प्रयोग किया जा सकेगा। यह अस्त्र संहारक नहीं होगा, मानव जाति के लिए बहुत कल्याणकारी होगा। इस कल्याणकारी उपक्रम की सफलता के लिए मैं आह्वान करता हूं कि अहिंसा की दिशा में सोचने वाले सब लोग मंच पर आएं और एक स्वर से बोलें । एक दिशा में उन सबके चरण आगे बढ़ें। इस मंगल-कामना के साथ अग्रिम सफलता के लिए फिर मैं शुभकामना करता हूं।
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