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समस्या का मूल : परिग्रह चेतना
हम एक साथ अधिक क्षणों को कभी भी नहीं जी सकते । हमारा आज का दिन और उसका वर्तमान क्षण ठीक से जीया जा रहा है तो कल का प्रवेश निश्चित रूप से शुभ होगा । प्रवेश करने के बाद कल आज बन जाएगा और आन वाले कल को संवारने का आधार बनेगा ।
आज मनुष्य की आंखों में कम्प्यूटर युग और रोबोट युग के सपने हैं । इन सपनों को साकार करने की कल्पना इस युग की युवा पीढ़ी के मन में गुदगुदी पैदा कर रही है । कम्प्यूटर युग के साथ ही अन्तरिक्ष युग की संभावना को भी काफी पुष्ट किया जा रहा है । ऊपर-ऊपर से देखा जाए तो ऐसा प्रतीत होता है कि मानो २१ वीं सदी का आदमी बहुत ही साधन-सम्पन्न और आनन्द सम्पन्न हो जाएगा । किन्तु इसके पीछे उसे कितनी त्रासदी भोगनी होगी, कोई नहीं बता सकता ।
खैर, काल की गति को रोकना संभव नहीं है, पर क्या उसे बदलना भी संभव नहीं है ? काल मनुष्य को बदलने के लिए विवश करे तो क्या मनुष्य इतना सत्त्वहीन है कि वह काल के प्रवाह को न बदल सके । इस काल का नियन्ता भी मनुष्य है। यदि वह इस युग की बुराइयों को साथ लेकर अगली सदी में प्रवेश करेगा तो उसका भविष्य कभी शुभ नहीं होगा ।
वर्तमान युग में मुख्य रूप से दो बुराइयां हैं- अणु अस्त्र और आतंकवाद । इन दोनों के मूल में जो कारण है, वह है परिग्रह - चेतना की सक्रियता । निष्कर्ष रूप में सोचा जाए तो सब समस्याओं का मूल है 'परिग्रह' । परिग्रह के अभाव में न आतंकवाद बचेगा और न ही अणु अस्त्रों के निर्माण का सपना आएगा । इसलिए नयी सदी में प्रवेश करने से पहले परिग्रह की समस्या का समाधान खोजना है— अर्थ -शुद्धि के साधनों एवं विसर्जन के सिद्धांत पर ध्यान देना है । ऐसा करने वाला व्यक्ति ही युगीन बुराइयों की गिरफ्त से मुक्त होकर आगे बढ़ सकेगा ।
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