Book Title: Ahimsa Vyakti aur Samaj
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 235
________________ साम्यवाद और अध्यात्म साम्यवाद और अध्यात्म इन दोनों धाराओं का कुछ बिन्दुओं पर समान चिन्तन है | अध्यात्म का दृष्टिकोण है— न मे माता न मे पिता न मे भ्राता न मे सुतः । माता, पिता, भाई, बहन, पुत्र, पति, पत्नी - ये जितने सांसारिक संबंध हैं, वे वास्तविक नहीं हैं । सचाई यह है कि कोई किसी का नहीं है । जितने अनुबंध हैं, वे सारे स्वार्थ के हैं । जिस व्यक्ति का जब तक जिससे स्वार्थ सधता है, तब तक वह उसका आत्मीय है । स्वार्थ का विघटन होते ही अपना पराया हो जाता है । इसलिए किसी को अपना मानना एक भ्रांति है । व्यक्ति अकेला आया है और अकेला जाता है । मध्यकाल में मोह का जितना अनुबंध होता है, व्यक्ति उतना ही दुःखी होता है । इस प्रकार अध्यात्म मनुष्य को एकत्व भावना से भावित करता है । व्यक्ति को व्यापक साम्यवाद भी परिवार की सीमा रेखा को तोड़कर दृष्टि से काम करने की प्रेरणा देता है। उसके अनुसार राष्ट्र एक इकाई है । व्यक्ति राष्ट्र का है। माता-पिता का उस पर कोई अधिकार नहीं है । राष्ट्र के हर नागरिक की सेवा और सुरक्षा का दायित्व राष्ट्र पर ही है । चीन में ऐसी व्यवस्था है कि बच्चों का लालन-पालन भी उनके माता-पिता द्वारा नहीं होता है । कोई मां ममता की प्रेरणा से अपने बच्चे को अपने पास रखना चाहे तो उसे राष्ट्रीय दृष्टि से अपराध समझा जाता है । साम्यवादी चिन्तकों की इस विचारधारा की पृष्ठभूमि यह है कि यदि व्यक्ति परिवार से जुड़ा रहेगा तो उसमें राष्ट्रप्रेम पर्याप्त रूप से नहीं निखरेगा । वह अपने माता-पिता या अन्य पारिवारिक जनों के लिए अनैतिक बन सकता है। एक-एक व्यक्ति की अनैतिकता राष्ट्रीय भावना के लिए खतरा है, क्योंकि व्यक्तिगत व्यामोह की प्रबलता में सामूहिकता की भावना गोण हो जाती है । साम्यवादी देशों में पारिवारिक पद्धति या तो है ही नहीं, जहां है, वहां भी इतनी हल्की है कि उसका व्यक्ति पर विशेष प्रभाव नहीं होता । क्योंकि कोई भी लड़का या लड़की अपने माता-पिता की संपत्ति का उत्तराधिकारी नहीं होता । मृत्यु के बाद व्यक्ति की सारी संपत्ति का अधिकार सरकार का होता है । व्यक्ति की अनिवार्यतम अपेक्षाएं जैसे शिक्षा, चिकित्सा, आवास, भोजन आदि की व्यवस्था भी राष्ट्र करता है तथा उसकी संपदा और योग्यता का लाभ भी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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