Book Title: Ahimsa Vyakti aur Samaj
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 237
________________ २२६ अहिंसा : ब्यक्ति और समाज एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति को बुराई छुड़ाने के लिए बुराई से संबंधित उपकरण चुराता है । उसकी इस प्रवृत्ति के पीछे रही हुई प्रेरणा गलत नहीं है। क्योंकि वह सोचता है— संबन्धित व्यक्ति अनैतिक न रहे, हत्यारा न रहे। इस भावना से उसने जो वस्तु इधर-उधर की, उसे हड़पने की उसकी इच्छा नहीं है। बच्चा अज्ञानवश पत्थर फेंकता है या किसी अन्य उपकरण का दुरुपयोग करता है, तब अभिभावक उसे छिपा देते हैं। यह प्रवृत्ति चोरी नहीं होती। इसी प्रकार कोई हित साधन की दृष्टि से ऐसा काम करता है, उसे चोरी नहीं कहा जा सकता । क्योंकि चोरी में हड़पने की वृत्ति होती है । मूर्छा होती है । पदार्थ के उपयोग की भावना रहती है । इस दृष्टि से यह सही है कि हितैषी व्यक्ति के मन में चोरी की नहीं, संबंधित व्यक्ति को सुधारने की भावना है । यह घास को चिनगारी से बचाने का प्रयत्न है। उक्त घटना में प्रेरणा बुरी नहीं है, प्रवृत्ति असामान्य नहीं है, पर परिणाम की बात संदिग्ध है । इसलिए किसी भी व्यक्ति को नैतिक बनाने का तरीका यह नहीं है। यह तो तात्कालिक उपचार है । स्थूल प्रक्रिया है। संभव है, वह व्यक्ति अपना छुरा खो जाने के कारण चोरी से उपरत होने के बजाय दूसरा छुरा खरीद कर अपनी मंशा पूरी कर ले, क्योंकि हत्या के प्रति उसके मन में ग्लानि नहीं है । अणुव्रत किसी भी व्यक्ति को बलात् अणुव्रती या धार्मिक बनाने में विश्वास नहीं करता । मन बदल जाता है तो कोई भी परिस्थिति व्यक्ति को अनैतिकता की ओर प्रेरित नहीं कर सकती। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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