Book Title: Ahimsa Vyakti aur Samaj
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 236
________________ साम्यवाद और अध्यात्म २२५ सरकार को ही मिलता है । इस दृष्टि से वहां व्यक्ति और परिवार दोनों ही गौण हो जाते हैं, प्रमुखता मिलती है राष्ट्रीय हितों को। परिवार मेरा नहीं है । वह मुझे त्राण या शरण नहीं दे सकता। यह भावना अध्यात्म और साम्यवाद दोनों से जन्म लेती है, पर दोनों का उद्देश्य भिन्न है । अध्यात्म का ध्येय है व्यक्ति की मूर्छा टूटे । वह निर्मोहता के पथ पर अग्रसर होता हुआ वीतराग बन जाये जबकि साम्यवाद का लक्ष्य होता है राष्ट्रीय हितों को प्रोत्साहन । प्रश्न का अन्तिम हिस्सा है व्यक्ति की उपयोगिता से संबंधित । परिवार की मूर्छा टूट जाने पर व्यक्ति समाज के लिए उपयोगी हो ही जाता है, यह बात एकान्ततः सही नहीं है । क्योंकि यहां भी सब कुछ उद्देश्य पर निर्भर करता है । इसमें व्यक्ति की मनःस्थिति, बाहरी परिस्थिति, समाज के मानदंड और व्यक्ति का संकल्पबल काम करता है । अतः इन तथ्यों को समझने के लिए सापेक्ष दृष्टि का उपयोग करना जरूरी है। व्यक्ति के मूलभूत अधिकार सामाजिक, राजनैतिक या धार्मिक कोई भी पद्धति हो, उसमें अच्छाई के साथ कुछ दोष आ ही जाते हैं। जब तक अच्छाई का पलड़ा भारी रहता है, दोष नीचे दबे रहते हैं। अच्छाई की मात्रा कम होते ही दोष उस पद्धति पर हावी हो जाते हैं और वह विवादास्पद बन जाती है । साम्यवादी धारणा के साथ भी कुछ बातें ऐसी हैं, जो समालोच्य है । व्यक्ति की आकांक्षाओं का जहां तक प्रश्न है, सामूहिक जीवन में वह अपेक्षाकृत गौण होती ही है। अधिकारों के अपहरण की बात भी ऐसी है कि जिस पद्धति में व्यक्ति को कोई विशेष अधिकार प्राप्त ही नहीं हैं, वहां उनका अपहरण भी कैसा? अपेक्षा इस बात की है कि साम्यवादी व्यवस्था की पृष्ठभूमि में रह गये दोषों को परिमार्जित कर उसे अध्यात्म-संवलित बनाया जाये । अध्यात्म की पुट लगने से दमन या अपहरण जैसी बात स्वयं समाप्त हो सकती है।। नैतिकता की परम्पराएं नैतिकता अन्तःप्रेरणा की निष्पत्ति है। बलात् किसी भी व्यक्ति को नैतिक नहीं बनाया जा सकता । हृदय-परिवर्तन और बलपूर्वक आरोपण ये दो स्थितियां हैं। हृदय-परिवर्तन से जो बात स्वीकार की जाती है, वह धर्म है, अध्यात्म है, नैतिकता है। किन्तु धार्मिक संस्कार भी बलात् थोपे जाएं तो उनसे व्यक्ति धार्मिक नहीं बन सकता। अब रही बात बल प्रयोग करने वाले व्यक्ति की प्रवृत्ति से संबंधित । वैसे हर स्थिति में प्रेरणा, प्रवृत्ति और परिणाम-इन तीनों के बारे में चिन्तन करना जरूरी है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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