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अहिंसा : व्यक्ति और समाज
होने लगी | व्यापारियों की दृष्टि पंसे पर टिकी हुई है । भारतीय व्यापारियों की अफसलता का सबसे बड़ा कारण यही हो सकता है कि उन्होंने अपनी व्यापार नीति से नैतिक मूल्यों को अलग कर दिया है। आज फिर से इन मूल्यों के प्रतिष्ठापन की अपेक्षा है । ऐसा होने से ही मनुष्य की स्वतंत्र चेतना विकसित हो सकेगी।
नया - निर्माण
व्यक्ति और समाज का नये सिरे से निर्माण करना अणुव्रत का उद्देश्य है । अणुव्रत के इस निर्माण कार्य का स्वरूप क्या है ?
यह तथ्य पहले ही स्पष्ट हो चुका है कि अणुव्रत मूल्य परिवर्तन के माध्यम से स्वतंत्र चेतना द्वारा व्यक्ति-निर्माण और समाज-निर्माण का मार्ग प्रस्तुत करता है । समाज रचना के मुख्यतः तीन आधार हैं-विचार, व्यवहार और संस्कार | मूल्य परिवर्तन के द्वारा विचारों, व्यवहारों और संस्कारों को नैतिक मूल्यों के अनुरूप ढालना सबसे बड़ा निर्माण है ।
अणुव्रत मूल्य परिवर्तन की दिशा में सदा ही सक्रिय रहा है । वह अपने इस प्रयोग में सफल भी रहा है । धर्मोपासना के सम्बन्ध में कुछ मूल्यांकन स्थिर थे, जैसे
परलोक सुधारने के लिए धर्म करना चाहिए ।
मनुष्य नैतिक बने या नहीं पर उसे धार्मिक बनना चाहिए ।
धर्माचरण के लिए धर्मस्थानों में जाना चाहिए ।
अवस्था विशेष आ जाने के बाद धर्मोपासना के लिए समर्पित हो जाना चाहिए आदि ।
इन मूल्यों के आधार पर धर्म में रूढ़ता आ गई है। धर्म को रूढ़ होने से बचाने के लिए अणुव्रत ने नया दर्शन दिया
धर्म परलोक के लिए नहीं, वर्तमान जीवन की शांति के लिए है । मनुष्य धार्मिक बने, पर उससे पहले नैतिक बनना जरूरी है । क्षेत्र और समय की सीमाओं से धर्म का कोई अनुबंध नहीं है । अणुव्रत रूढ़ धाराओं, मिथ्या मान्यताओं और अर्थहीन मूल्यों को विघटित कर निर्माण के लिए नयी पृष्ठभूमि प्रस्तुत कर रहा है ।
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