Book Title: Ahimsa Vyakti aur Samaj
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 185
________________ १७४ अहिंसा : व्यक्ति और समाज प्रेम के अभाव में एक आदमी दूसरे आदमी से घृणा करता है । उसे हीन मानता है, तिरस्कृत करता है। सहानुभूति के अभाव में एक आदमी दूसरे आदमी की कठिनाइयों की उपेक्षा करता है । अपने ही सुख-दुःख की समस्या को प्राथमिकता देता है। अनाग्रही दृष्टिकोण के अभाव में मनुष्य वैचारिक स्वतंत्रता का हनन करता है । मतभेद के आधार एक-दूसरे को कुचलने का प्रयत्न करता है। __ आज का विश्व दो समस्याओं का सामना कर रहा है। विश्व का एक भाग व्यक्तिगत स्वामित्व को निरस्त कर सामुदायिक व्यवस्था चला रहा है । उसे व्यक्ति के आर्थिक विकास की प्रेरणा को समस्या का सामना करना पड़ रहा है। व्यक्तिगत लाभ से जो आर्थिक विकास की प्रेरणा मिलती है, वह सामुदायिकता के क्षेत्र में अपनी तीव्रता खो देती है। विश्व का दूसरा भाग व्यक्तिगत स्वामित्व की व्यवस्था चला रहा है । उसे बेकारी तथा आर्थिक वैषम्य की समस्या का सामना करना पड़ रहा है । क्या विसर्जन इन दोनों समस्याओं का समाधान है ? उसमें व्यक्तिगत स्वामित्व की व्यवस्था का लोप भी नहीं है और अतिरिक्त संग्रह की बुराई भी नहीं है। किन्तु विसर्जन ऐच्छिक है, अनिवार्य नहीं है। इसलिए उसका सामुदायिक बनना कठिन है। इस दुनिया की प्रकृति ही ऐसी है कि कोई भी वस्तु पूर्णरूपेण कठिनाई से मुक्त नहीं होती। पूर्वोक्त दोनों प्रयोग राजकीय व्यवस्था द्वारा संचालित हैं। विसर्जन का प्रयोग किसी तंत्र द्वारा नहीं, एक नैतिक प्रेरणा द्वारा संचालित हो सकता है । अणुव्रत को अवश्य ही इसका संचालन करना है । मनुष्य जाति की एकता और विसर्जन-ये दोनों अणुव्रत-प्रेरित समाज-रचना के मुख्य सूत्र हैं। इस प्रकार की समाज-रचना समाजवाद के अनुकूल ही नहीं होगी, अपितु उससे उत्पन्न हिंसा और प्रतिक्रिया की समस्याओं को समाधान देने वाली होगी। यह बहुत बड़ा कार्य है, बहुत जटिल और बहुत श्रम-साध्य । इसकी संपूर्ति के लिए दृढ़ निष्ठा, दृढ़ संकल्प और दृढ़ अध्यवसाय लेकर चलने वाले कार्यकर्ताओं की आवश्यकता है। विभक्त निष्ठा वाले कार्यकर्ता बहुत नहीं कर पाते । ऐसे कार्यकर्ताओं की उपलब्धि या निर्माण आवश्यक है। अब परि स्थितियां इतनी तेजी से बदल रही हैं कि इस कार्य में विलम्ब क्षम्य नहीं है कालातिक्रांत कार्य स्वयं अर्थहीन हो जाता है। क्या मैं आशा करूं वि अणुव्रत के कार्यकर्ता इस पर गंभीरतापूर्वक विचार करेंगे ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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