Book Title: Ahimsa Vyakti aur Samaj
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 211
________________ अर्थतंत्र और नैतिकता व्यक्ति को आर्थिक दृष्टि से निश्चिन्त बनाना और सुरक्षा देना उन्नत समाज-व्यवस्था का प्रतीक है। जिस समाज के व्यक्ति निश्चिन्त और सुरक्षित होते हैं, वह बहुमुखी विकास कर सकता है; अन्यथा व्यक्ति की प्रतिभा और कार्यक्षमता उदरपूर्ति जैसे सामान्य कार्य में क्षीण हो जाती है । जिस राष्ट्र के नागरिक भोजन, आवास, चिकित्सा और शिक्षा की उचित सुविधा प्राप्त कर लेते हैं, वह राष्ट्र अध्यात्म और विज्ञान की नयी शोध के क्षेत्र में गतिशील हो सकता है। व्यक्ति की चिन्ता और आशंका के मूलभूत बिन्दु हैं -- जीविका, बीमारी बुढ़ापा आदि । जीविका मनुष्य जीवन की सबसे बड़ी समस्या है। बीमारी ओर वृद्धावस्था व्यक्ति को निरीह बना देती है । उस समय उसे किसी आलम्बन की अपेक्षा अनुभव होती है । इन सब स्थितियों के समाधान की बहुत सारी जिम्मेदारियां सरकार के हाथ में हैं । सुरक्षा की व्यवस्था भी सरकारी व्यवस्थाओं ने अनुबंधित है । व्यवसाय के क्षेत्र में भी व्यक्ति कितना नैतिक रहता है, यह प्रश्न भी व्यावसायिक परिस्थितियों और कानूनों पर निर्भर है । कोई भी आचार-परम्परा, चाहे वह अणुव्रत की हो अथवा दूसरी, सत्तात्मक या अधिकारात्मक योजना नहीं दे सकती । उसके पास होती है नैतिक बने रहने की मनोभूमिका के निर्माण की योजना । इस योजना में सब प्रकार के भय और आशंकाओं को झेलने तथा उनका पार पाने की कल्पना है और है यथार्थ से जूझने की क्षमता । व्यक्ति के सामने जितनी समस्याएं आती हैं, उनका अन्तिम समाधान स्वयं उसी के पास होता है । बाहर के सारे समाधान अथार्थ और अधूरे होते हैं। इस प्रकार की मनोभूमिका का निर्माण होने के बाद व्यक्ति एक सीमा तक निश्चिन्त और सुरक्षित हो जाता है । एक योजना अणुव्रत के मंच से बनी थी, जिसकी क्रियान्विति अभी तक नहीं हो पायी है । इसके अनुसार अणुव्रत में आस्था रखने वाले व्यक्तियों का एक अपना समाज हो । संगठित समाज रचना समस्या का सीधा समाधान है । यद्यपि सारी समस्याएं अन्तिम रूप से समाहित हो जाएं, यह रास्ता बहुत लम्बा है । फिर भी प्रारम्भिक रूप से यह एक अच्छी प्रक्रिया हो सकती है । अकेला व्यक्ति किसी भी समस्या का सामना करता है, यह बहुत कठिन परिस्थिति है । समाज में शक्ति होती है और वह किसी भी नये वातावरण का निर्माण आसानी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238