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अर्थ-व्यवस्था के सूत्र
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उसने सबसे पहले मानवीय संवेदन को काट कर अलग रख दिया और फिर अस्त्रों का निर्माण किया । यदि उस वैज्ञानिक में मानवजाति के प्रति संवेदना होती तो वह ऐसा जघन्य कार्य कभी नहीं करता । मनुष्य की सबसे बड़ी विशेषता है - संवेदनशीलता ।
जिन-जिन में अध्यात्म जागा है, उनमें संवेदनशीलता अवश्य जागी है । उनमें करुणा का प्रवाह फूटा है और वे समता से ओतप्रोत हुए हैं। वह व्यक्ति फिर किसी का अनिष्ट नहीं कर सकता, धोखा नहीं दे सकता; किसी की भूमि या सम्पत्ति नहीं हड़प सकता, अनैतिकता नहीं कर सकता आदि आदि ।
हम संवेदनशीलता को जगाएं। वह इतनी व्यापक बन जाय कि पूरा मानव समाज ही नहीं, पूरा प्राणी जगत् उसमें समा जाए। इतना होने पर ही क्रूरता घुल सकती है । अन्यथा बाप बेटे को और बेटा बाप को, सास बहू को और बहू सास को मार सकती है। कोई रोकने बाला नहीं है । जब संवेदना रुक जाती है तब कौन किसको नहीं मार सकता ? सब सबको मार सकते हैं । संवेदना के अभाव में कोई संबंध टिकता ही नहीं ।
आदमी बदले, यह मूल बात है । इसका तात्पर्य है कि उसमें रही हुई क्रूरता बदले, शोषण की वृत्ति बदले, नयी चेतना का निर्माण हो । सबसे अधिक अनर्थ करने वाली दो वृत्तियां हैं- लोभ की वृत्ति और इच्छा की वृत्ति । ये जन्म देती हैं क्रूरता को । संवेदनशीलता से ही ये बदल सकती हैं ।
ध्यान संवेदनशीलता को जगाने की प्रणाली है। जीवन की जितनी प्रणालियां हैं-आर्थिक प्रणालियां और राजनैतिक प्रणालियां --- इन सबके दोषों का परिमार्जन करने वाली प्रणाली है— ध्यान की प्रणाली ।
ध्यान का मूल प्रयोजन है— चेतना का रूपान्तरण, वृत्तियों का परिकार । इनमें पहला परिष्कार है-लोभ का और स्वार्थ का ।
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