Book Title: Ahimsa Vyakti aur Samaj
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 199
________________ १८८ अहिंसा : व्यक्ति और समाज व्यावहारिक हो सके, जनता के लिए राज्य के बिना काम चलाना और अपनी व्यवस्था प्रत्यक्ष रूप में अपने-आप कर लेना संभव बनाया जाय । समाजवाद की भाषा में बोलना हो तो मैं इस प्रकार कहूंगा कि राज्यसत्ता का इस्तेमाल करके समाजवाद कायम करने के बजाय जनता के स्वैच्छिक प्रयत्नों द्वारा समाजवादी जीवन के स्वरूपों की सृष्टि और विकास किया जाय । दूसरे शब्दों में उपाय यह है कि राज्यवादी समाजवाद के स्थान पर जनता का समाजवाद कायम किया जाय । सर्वोदय जनता का समाजवाद है। प्रत्येक समाजवादी सर्वोदय से सहमत हो या नहीं, इतना तो उसे मानना चाहिये कि "जितना ही जनता का अथवा स्वैच्छिक समाजवाद अधिक होगा और राज्य की ओर से लादा हुआ समाजवाद कम होगा, समाजवाद उतना ही अधिक पूर्ण और यथार्थ बनेगा।" भावी समाज प्रश्न यह है कि उस समाज का रूप क्या होगा जिसमें जनता के लिए अपने सामाजिक जीवन का स्वयं-संचालन करना और जीवन के उन समस्त मूल्यों का विकास करना संभव होगा, जो सहकार, आत्मानुशासन, उत्तरदायित्व की भावना आदि के रूप में समाजवादी समाज की विशेषताएं हैं। यह ऐसा प्रश्न है, जिसकी ओर समाजवादियों ने अब तक कम-ये-कम ध्यान दिया है। मानव समाज कुछ इस तरह विकसित हुआ है कि उससे आज की पेचीदा औद्योगिक सभ्यताएं ही निकलतीं, इन 'सभ्यताओं' में शहर कहलाने वाले मनुष्यों के बड़े-बड़े जंगल हैं, आर्थिक और सामाजिक संबन्ध सर्वथा अवैयक्तिक और निष्प्राण हैं, कार्य-प्रणाली कष्टसाध्य है और मनुष्य आनन्द एवं सृजनशक्ति की अभिव्यक्ति के अवसरों से वंचित है। उसे केवल उत्पादन-शक्ति और कार्यक्षमता के आधार पर ही मान्यता मिलती है। विज्ञान ने अखिल विश्व को सिकोड़कर एक पड़ोस बना दिया है, किन्तु मनुष्य ने एक ऐसी सभ्यता का निर्माण कर लिया है जिसमें कि पड़ोसी भी अपरिचित बन गये हैं। इस प्रकार का केन्द्रित, पेचीदा और ऊपर से बोझिल (Top-heavy) समाज अफसरशाहों, व्यवस्थापकों, यंत्रज्ञों और अंक-शास्त्रियों के लिए स्वर्ग बन जाता है। इस प्रकार का समाज एकरस नहीं बन सकता, जहां भाई भी भाई-भाई की तरह एक साथ न रह सकें। समाजवादियों ने विज्ञान, उत्पादन, कार्यक्षमता, जीवन स्तर तथा ऊचे-ऊंचे आदर्श वाले नारों के नाम पर समाज के इस भस्मासुर को बिलकुल ज्यों-का-त्यों ले लिया है और अब वे आशा करते हैं कि इसमें सार्वजनिक स्वामित्व या जनता की मालिकी जोड़कर वे उसे समाजवादी बनायेंगे । मैं नम्रतापूर्वक कहना चाहता हूं कि इस प्रकार के समाज में समाजवादी सांस भी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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