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अहिंसा : व्यक्ति और समाज है। जिन लोगों ने इसमें थोड़ा भी अवगाहन किया है, वे विचार-चिकित्सा के नाम से नयी चिकित्सा-विधि का प्रयोग कर रहे हैं । इस विधि में हिंसा, भय, निराशा जैसे नकारात्मक विचारों की कोई मूल्यवत्ता नहीं है । अहिंसा एक मात्र पोजिटिव थिंकिंग पर खड़ी है। पोजिटिव थिंकिंग अनेकान्त की उर्वरा में ही पैदा हो सकती है। अनेकांत के बिना विश्व-शांति की कल्पना ही नहीं हो सकती।
शान्ति का दूसरा बड़ा कारण है-त्याग की चेतना के विकास का प्रशिक्षण । भोगवादी वृत्ति से हिंसा को प्रोत्साहन मिलता है। यदि व्यक्ति को शान्ति से जीना है तो उसे त्याग की महिमा को स्वीकार करना होगा, त्याग की चेतना का विकास करना होगा। आचार्य भिक्षु ने सब प्रकार के उपचारों से ऊपर उठकर साफ शब्दों में कहा—'त्याग धर्म है : भोग धर्म नहीं है।' 'संयम धर्म है : असंयम धर्म नहीं है। यह वैचारिक आस्था व्यक्ति में अहिंसा की लौ प्रज्वलित कर सकती है।
बात विश्व शान्ति की हो और विचारों में घोर अशान्ति व्याप्त हो तो शान्ति किस दरवाजे से भीतर प्रवेश करेगी ? एक ओर शांति पर चर्चा, दूसरी ओर घोर प्रलयंकारी अणु अस्त्रों का निर्माण ! क्या यह विसंगति नहीं है ? ऐसी विसंगतियां तभी टूट सकेंगी, जब अणु अस्त्रों के प्रयोग पर नियंत्रण हो जाएगा।
जिस प्रकार पानी मथने से घी नहीं मिलता, वैसे ही हिंसा से शान्ति नहीं होती । शान्ति के सारे रहस्य अहिंसा के पास हैं । अहिंसा से बढ़कर कोई शास्त्र नहीं है, शस्त्र भी नहीं है। आवश्यकता है इस संदर्भ में कुछ नया खोजने की । जब तक हम नयी खोज-यात्रा के निष्कर्ष तक नहीं पहुंच पाएंगे, अहिंसा की क्रियान्विति कोरी कल्पना बनकर रह जाएगी। कल्पना के चोगे को उतारे बिना विश्व-शान्ति का सपना कभी साकार नहीं हो सकेगा।
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