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अहिंसक जीवन-शैली
घोषणापत्र को पढ़ा, एक बार तो वह निर्वाक रह गया होगा।
अमेरिका और रूस विश्व की दो बड़ी शक्तियां हैं । इनमें से एक शक्ति का भी झुकाव अहिंसा की ओर होता है तो इससे तीसरी दुनिया के राष्ट्रों को बड़ा बल मिलता है।
हिंसा से हिंसा बढ़ती है । शस्त्रों की परम्परा चलती है। ऐसी स्थिति में किसी भी बड़े राष्ट्र की सत्ता पर आरूढ़ व्यक्ति के मन में अहिंसा को प्रतिष्ठा देने का मनोभाव जागता है, यह एक ऐसा बदलाव है, जिसकी पिछले कई दशकों से प्रतीक्षा थी।
२७ नवम्बर १९८६ को दिल्ली में प्रसारित भारत और सोवियतसंघ का दस-सूत्री घोषणापत्र कोई अजूबा नहीं है, अहिंसा की विजय है, अध्यात्म की विजय है। कोई भी शांतिप्रिय व्यक्ति, समाज या देश उससे आश्वस्त हो सकता है। स्वयं आश्वस्त होने तथा दूसरों को आश्वस्त करने का यह उपक्रम केवल दस्तावेज बनकर ही न रह जाए, इसके लिए अहिंसा में आस्था रखने वाले सभी व्यक्तियों, संगठनों और राष्ट्रों को एकजुट होकर काम करना है।
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