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अहिंसा : व्यक्ति और समाज और आत्म-निर्भरता सापेक्ष ही हो सकती है। धर्म और नैतिकता की अपेक्षा से व्यक्ति वास्तविक हो सकता है, किन्तु अर्थ और काम की अपेक्षा से वह वास्तविक नहीं है। अर्थ और काम की अपेक्षा से समाज वास्तविक हो सकता है किन्तु धर्म और नैतिकता की अपेक्षा से वह वास्तविक नहीं है। व्यक्ति वास्तविक और समाज अवास्तविक-व्यक्तिवादी दार्शनिकों की इस स्वीकृति ने व्यक्ति को अर्थ-संग्रह की असीमित स्वतन्त्रता देकर शोषण की समस्या को जन्म दिया। समाज वास्तविक और व्यक्ति अवास्तविक-समाजवादी दार्शनिकों की इस स्वीकृति ने व्यक्ति की वैचारिक स्वतन्त्रता को राज्यप्रतिबद्ध कर मानव के यंत्रीकरण की समस्या को जन्म दिया । व्यक्ति और समाज की सापेक्ष वास्तविकता की स्वीकृति ही इन समस्याओं से समाज को मुक्ति दे सकती है।
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