________________
स्वस्थ समाज-रचना का संकल्प
१५६
बड़ी सुविधा होती है। जब संस्कार रूढ़ हो जाते हैं, अजित आदतें जब रूढ़ बन जाती हैं तब उन्हें तोड़ना हर किसी के वश की बात नहीं होती । कुछ व्यक्ति अपवाद हो सकते हैं कि जो बड़ी अवस्था में भी आमूलचूल बदल सकते हैं, अपनी आदतों को बदल देते हैं, अपने संस्कारों में भी परिवर्तन ला देते हैं। किन्तु इसे मैं साधारण घटना नहीं मानता। यानी बड़ा होने के बाद संस्कारों को बदलना एक विशेष घटना है और छोटी अवस्था में संस्कारों को न बदलना एक विशेष घटना है। जब कि सम्भावना यह है कि छोटी अवस्था में अभिलषित आदत का निर्माण किया जा सकता है, वह बहुत संभव
इसलिए शिक्षा के साथ इसकी बहुत संगति बैठती है कि प्रारम्भ से ही बच्चों में वैसी आस्थाओं का निर्माण किया जाए, जिनकी अपेक्षा समाज रखता है और जिन्हें हम सामाजिक मूल्य के रूप में विकसित करना चाहते
अहिंसा का तीसरा तत्त्व है.--कष्ट-सहिष्णुता । हमारे सामने दो मार्ग हैं । एक है सुविधा का मार्ग और दूसरा है कष्ट-सहिष्णुता का मार्ग । मैं कष्टसहिष्णुता की चर्चा करूं तो मुझे ऐसा लगता है कि मैं आज की धारा के प्रतिकूल बात कह रहा हूं। आज युग की धारा सुविधावादी धारा है। सारे आश्वासन सुविधावाद के मिल रहे हैं। एक व्यक्ति चुनाव लड़ता है, वह अपने चुनाव क्षेत्र में आश्वासन देता है। आश्वासन सबसे ज्यादा यह देता है कि मैं तुम्हें अधिक से अधिक सुविधा उपलब्ध कराऊंगा, और उस आधार पर चुनाव में हार और जीत होती है। शायद पूरा कर सके या न कर सके, पर आश्वासन सुविधा का देगा, अधिक से अधिक सुविधा का।
एक व्यक्ति चुनाव में खड़ा हुआ। उसने चुनाव का प्रचार शुरू किया और कहा कि देखो, पहली बार तुम लोगों ने मुझे जिताया तो मैंने गांव-गांव में पानी के नल लगवा दिए। अगर मुझे जिताओंगे तो नलों में पानी भी आ जाएगा । आश्वासन देता है और उस सुविधा के आश्वासन में आदमी उलझ जाता है।
__एक बड़ी समस्या है --- सुविधावादी दृष्टिकोण । मैं उसके प्रतिपक्ष में कष्ट-सहिष्णुता की बात कर रहा हूं। अभी गर्मी नहीं है। यदि गर्मी हो तो हर व्यक्ति पंखे के आस-पास बैठना चाहेगा, कमरे में बैठना कोई नहीं चाहेगा। हमारी प्रवृत्ति है सुविधा की ओर । सहज आकर्षण है सुविधा के प्रति । तो क्या हम मनुष्य की सहज मांग को ठुकरा कर कोई ऐसी प्रतिकूल धारा की बात तो नहीं कर रहे हैं जिसे अस्वाभाविक कहा जाए ?
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org