________________
M
अहिंसा : व्यक्ति और समाज
हिंसा के प्रति सार्वभौम प्रतिबद्धता के हाथ की पांचवीं अगुली है मानव का उन देशों के मध्य खण्ड-विभाजन, जिनका जन्म विजय, राजविप्लव, क्रान्तियों, गृह-युद्धों, युद्धों और उपनिवेशी अधीनीकरण आदि से हुआ है। ये देश जो अपनी स्वयं की प्रजा पर बलपूर्वक आधिपत्य रखते है, समस्याओं को हल करने की सार्वभौम प्रक्रियाओं के सजन में बाधक हैंवे प्रक्रियायें जो समस्त विश्व की आवश्यकता हैं। हिंसा प्रधान देश की सरकार के प्रति वचनबद्धता, जो वस्तुतः राजनीतिक संगठन की महत्त्वपूर्ण इकाई है, विश्व को एक हिंसक सत्ता, चाहे वह एकात्मक हो या संघीय, में बदलने की दिशा में प्रथम चरण है। ऐसा नहीं होने तक या इसकी अन्तरिम स्थिति में, हिंसा के प्रति प्रतिबद्धताओं का परिणाम मानव को कई प्रकार के ऐसे सैन्य खण्डों में बांटना है जिनके घातक अस्त्र-शस्त्र-व्यापार के कैंसर से केवल शक्ति बढ़ती ही नहीं घटती भी है। ऐसा व्यापार उस विशेष मानवखण्ड की नर-संहारक क्षमता को निन्तर बढ़ाता चला जाता है। मानव का हिंसात्मक-खण्ड विभाजन राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक कल्याण की असमान परिस्थितियां उत्पन्न करता है । हिंसा के प्रति प्रतिबद्धता अन्य प्रकार के दमनकारी रूपों में भी पाई जाती है, जो नर-संहार रूपी अंगुलियों के विभिन्न पौर हैं, जैसे—पितृसत्ता, प्रजातिवाद, वर्गवाद और जातिवाद । अहिंसक रूपान्तरण की आवश्यकता
हिंसा के प्रति उन प्रतिबद्धताओं का अहिंसक रूपान्तरण करना होगा जो व्यक्ति से सार्वभौम स्तर तक पहुंच चुकी हैं---दमनात्मक एवं क्रान्तिकारी --मार दो, डराओ, निर्धन बनाओ, दमन करो, लूट लो और फूट डालो । हिंसा को अपनाने वाला व्यक्ति ही विश्व-स्तर पर प्रकट होने वाले हिंसा के विविध रूपों का आधार है, जो मानव के कल्याण एवं अस्तित्व के लिए खतरा उत्पन्न कर रहा है। अतः मानव की सबसे बड़ी आवश्यकता, जिसे अति शीघ्र या शनैः शनैः, पूर्णरूपेण अथवा विषमरूप से, जागृत करना है, वह है आत्मविनाश के स्रोत, हिंसा के प्रति प्रतिबद्धता को समूल नष्ट करना । अब वह समय आ गया है, जबकि मानव को अपने अस्तित्व और भावी कल्याण से सम्बद्ध समस्याओं का समाधान सिद्धान्तों पर आधारित एवं आवश्यकताओं को पूरी करने वाले अहिंसक विकल्पों को सोद्देश्य खोज निकालना है।
अब यह वह समय आ गया है जबकि हमें अहिंसक सार्वभौम रूपान्तरण की हमारी युगों पुरानी कल्पना को अहिंसक क्रान्ति के रूप में पाने के प्रयत्नों को और गति देना है । मानव इतिहास में प्रथम बार हमें क्रान्ति के जैसे इस प्रकार के दुष्कर कार्य का सामना करना पड़ रहा है, जो किसी बाह्य
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org