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अहिंसा : व्यक्ति और समाज
लिये उन्हें अलग कर दिया ।
एक दिन गांधीजी स्नान करने से पहले अपना कमीज धो रहे थे । कैनबैक को यह मालूम हुआ तो वे बोल उठे : "अरे भाई, आप क्यों धो रहे हैं ? यह धोबी है न ?” गांधीजी ने जबाब दिया : "कल से मैंने अपने कपड़े आप ही धोना शुरू कर दिया है। मुझे इतनी फुरसत मिलती है और मुझ में इतनी ताकत भी है । इसलिए अपने कपड़े तो मैं खुद ही धोऊंगा ।"
अब श्री कैलबैक क्या करते ? गांधीजी अपने कपड़े खुद धोयें और कैनबैक धोबी से धुलवायें, यह कैसे हो सकता था ? उसी समय से उन्होंने भी अपने कपड़े खुद धोना शुरू कर दिया। नतीजा यह हुआ कि धोबी भाई भी निठल्ले हो गये, और उन्हें भी विदा मिल गई ।
गांधीजी दक्षिण अफ्रीका में सत्याग्रह की लड़ाई में दूसरी बार जिस दिन जेल से छूटने वाले थे उस दिन श्री कैलनबैक एक नयी मोटर खरीद कर गांधीजी को जेल के दरवाजे पर लेने गये। गांधीजी जेल से बाहर आये । सबसे मिले । श्री कैलनबैक ने मोटर में बैठने की प्रार्थना की। गांधीजी ने पूछा: " किसकी मोटर है ?" श्री कैलन बैक ने बताया : "मेरी है । अभी खरीदकर लाया हूं ।"
“किसलिये खरीद लाये ?" गांधीजी ने पूछा ।
" आपको ले जाने के लिए । मेरे जी में आया कि आपको नयी मोटर में ले जाऊं ।" श्री कलनबैंक ने संकोच से जबाब दिया । "अच्छा तो कैलन बैक यह मोटर तुम अभी नीलाम घर पहुंचा आओ। मैं इसमें नहीं बैठूंगा । मेरे लिये तुम्हें यह मोह क्यों ? तुम पहुंचा कर वापस आओ, तब तक मैं यहीं खड़ा रहूंगा ।"
श्री कैलनबक तुरन्त मोटर को नीलाम घर पर छोड़ आये । वे लोटे तब तक गांधीजी अपने को लेने आये हुये दूसरे मित्रों के साथ वहीं खड़े रहे और बाद में सब पैदल चलकर अपने-अपने घर गये ।
श्री कैलन बैंक ने कुछ मास गांधीजी के साथ बिताये । इस अर्से में आहार के परिवर्तन पर बातचीत चली। दोनों अलोना और उबला हुआ खाना खाते थे । परन्तु हमारा आहार भी अप्राकृतिक है। सूर्य के ताप से पका हुआ भोजन ही कुदरती माना जा सकता है । पकी हुई खुराक को फिर आग पर हम या तो अपनी स्वादेन्द्रिय को पोषण देने के लिये पकाते हैं या अपनी गलत आदत के कारण पकाते हैं ।
इस चर्चा पर दोनों ने फलाहार करने का निश्चय किया । जरूरत हो तो सिर्फ गेहूं की रोटी फलों के साथ खाना तय किया । परन्तु यह विचार करने पर रसोइया भी अनावश्यक मालूम हुआ । फिर तो रसोइये के लिये अपना ही खाना बनाने का काम रह जाता था । इसलिये उसे भी विदा कर
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