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एकदम निःशस्त्र नहीं बनाया । लेकिन अंग्रेजों ने को संपूर्ण निःशस्त्र बना दिया। किसी भी कारण, अनुमति के शस्त्र रख नहीं सकता था ।
ऐसी स्थिति में हिन्दुस्तान के सामने एक बड़ा सवाल खड़ा हो गया - वह या तो हमेशा के लिए अंग्रेजों का गुलाम बना रहे या फिर कोई नया अधिक शक्तिशाली शस्त्र शोध निकाले । जनता के हाथ में शस्त्र नहीं थे, इस हालत में यदि निःशस्त्र मुकाबला करने की परम्परा न होती, तो हिन्दुस्तान कायम का गुलाम रह जाता। लेकिन इतने बड़े देश के लिए हमेशा गुलाम रहना असंभव था । अतः निःशस्त्र मार्ग की खोज करने की ऐतिहासिक आवश्यकता पैदा हुई । इसी में से महात्मा गांधी आये । वे न आये होते तो दूसरा कोई आता । यद्यपि उनकी जो शिक्षा थी और जिस समूह में से वे आये थे, उसके संस्कार की दृष्टि से तो गांधीजी का आना ही स्वाभाविक
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था ।
अहिंसा : व्यक्ति और समाज
यह किया । उन्होंने प्रजा कोई भी मनुष्य, बिना
गांधी : गुजरात की संस्कृतिरूपी आम का फल
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गांधीजी स्वयं गुजरात की संस्कृतिरूपी आम के फल थे । इस प्रदेश में जो तपस्या हुई, उसके परिणामस्वरूप गांधीजी यहां पैदा हुए थे । गांधीजी गुजरात में पके, यह कोई चमत्कार नहीं और न मात्र भाग्य की बलिहारी है । उसके पीछे एक तत्व है । गुजरात के दही में ही ऐसा कुछ है, जिससे ऐसा मक्खन निकल पाता है । गुजरात का सबसे ऊपर तैर आने वाला एक गुण है, वहां की आम जनता द्वारा अपनायी हुई सार्वत्रिक अहिंसा । इसी कारण गांधीजी का जन्म गुजरात में हुआ है, ऐसा मैं मानता हूं ।
यों देखा जाए तो यह बहुत छोटी चीज लगती है, लेकिन गुजरात की आम जनता ने मांसाहार का पूरा-पूरा त्याग किया है— ऐसी घटना दुनिया में और कहीं देखने को नहीं मिलती । मांसाहार - परित्याग का आन्दोलन हमारे पूर्वजों ने चलाया था । हजारों वर्षों तक उन्होंने यह चलाया । इसमें उन्होंने खूब तपस्याएं भी कीं । परिणामस्वरूप हिन्दुस्तान में आज ऐसी स्थिति मौजूद है कि मांस खानेवाले लोग हैं जरूर, लेकिन वे भी इसे गोण मानते हैं, बहुत अच्छी बात नहीं मानते । यानी शाकाहार की प्रतिष्ठा भारत में स्वीकार हो चुकी है । इतना जबरदस्त प्रयोग हिन्दुस्तान में हुआ, यह दुनिया भर में हिन्दुस्तान की विशेषता है । फिर हिन्दुस्तान में भी खासकर गुजरात की विशेषता है कि यहां का सामान्य जनसमुदाय भी मांसाहार छोड़ चुका है।
यह छोटी-मोटी घटना नहीं है । यह जो अहिंसा है, उसी के परिणामस्वरूप गांधीजी जैसी विभूति गुजरात में पकी और सारी दुनिया के दुःखों
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