Book Title: Agamsaddakoso Part 4
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agamdip Prakashan
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(सुत्तंकसहिओ)
૩૫૭
आया. ५१६: सूय. १५०.६७२: ठा. ५२
भग. १०५: नाया. ४:
उवा. २; अंत. १३,
अनुत्त. १०ः विवा. ९,३७:: उव. ३१; राय. १४:
जीवा. ४० पन्न. २१७:
सूर. १२; चंद. १४;
जंबू. ३; निर. २:
पुष्फि .७; वण्हि . ३;
वव. २३७; दसा, ९९; उत्त. १०१;
नंदी. १४; अनुओ. १३८; सय स्वक] पोतार्नु
आया. ९९,४८०,४८६,४९९,५२०; सूय. १६०.२४२,४२६,७९७,७९८; ठा. ३४७; भग.९०,९१,१३२, १५६,४४४,४८९,
५०६,५३१,५८७,६१७,६३७ः नाया. १४.४६.५५.६२,६८,७५,७६,
१२३.१४४,१४७,१४९,१५८,२११; उवा. ५.२०,२९.३२,३४,३७,४५.४८,५७; अंत. १३,२०,२७: अनुत्त. १०; विवा. ९,१२,१९.२४.३ १.३३,३७: उव. ११;
राय. १६.४८,५२; जंबू. ७६,७९,१०४.१२१.१२५,२१२,
२१५,२१८,२२२,२२६,२२९; निर. ९,१७,१८: , पुष्फि . ३,५; पुष्फ. ३: निसी. ६४५: वव. ६४ः दसा. ३५.९१,१०६ थी १११: उत्त. १७९,५५६,११४६,१२७१,१५४६. १५५४.१५६८.१५७९.१५८८.१६१७.
१६३२,१६४१: सय [सत्] विद्यमानता, अस्तित्व, सत्पुरुष
भग. ७७: दस. ८१.१८१: सय [शी] सुg
आया. २५२,४४२:
भग. ३१२,४८४,४८५ः नाया. १८५,२२०; राय. ३२: जीवा. १४३, जंबू. ६,१३,३२,१२७.१३८.१९४; भत्त. १४२,१४३: तंदु. २६; दस. ३२,३४० सय [स्वद् ५५g, छथि
आया. ३९४; सूय. ६६४; सयइच्छियभावना [स्वइच्छितभावना] पोतानी ઇચ્છલ ભાવના
देविं. १६७; सयं स्वयं] पोते, ते
आया. १६,१८,२३,२४,३१,३२,३७,३९, ४६,४८,५३,५९,६०,६२,७७,२१४,२७०, २८१,३२५,३३३,३४६,३७५,३९१,३९६, ४३४,४३५,४५३.४५५,४६५,४८०,४८५, ४८६,४८८.४९०.४९१,५३६ थी ५४०; सूय. ३,१०,२९,३०,९२,२६५,२९७, ३४८,४९४,५४५.५७५,६४१ थी ६४७, ६४९ थी ६५१,६५४ थी ६५६,६५८, ६५९,६६४ थी ६६७; ठा. १८६,५२२,८७२,८७५; सम. ४३:
भग. २६: नाया. १०
पण्हा. ११: विवा. १४:
पन्न. १७८,५३९: सूर. १४४:
चंद. १४८; गच्छा . ३५,६६: निसी. ५९ थी ७५,८३,८४,४०३; दस. ३३ थी ३९,२०८; उत्त. ३८१.४२९,८२०,८२६,१०११,
१०३५.१०९३.१४५१: सयं स्वकम्] पोतान
सूय. ४१.५०.६८.७२,७३.१८७,७४८; सयंगाह स्वयंग्राहा पोते अहए। २नार
पण्हा. ४५: सयंजय [शतञ्जय] पक्षनो तेरभो हिवस सूर. ६३
चंद. ६७: __ जंबू. २९१:
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