Book Title: Agamsaddakoso Part 4
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agamdip Prakashan
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૪૫૦
आगमसद्दकोसो
सुद्धोदन शुद्धोदन] शुद्ध योगा
भग. १६०; सुद्धोदय [शुद्धोदक निर्भग 4
आया. ५२०; सूय. ६९१; नाया. १५,१६९; उव. ३१; जीवा. १८;
पत्र. ३०; जंबू. ५६,१२५; दसा. ९९;
उत्त. १५४९; सुद्धोयण शुद्धोदन] निभणयोमा
भग. १६०; सुद्धोयतराय [सुधौतरक] सारी शत होsg
भग. २७३, सुद्धोवहड [शुद्धौपहत] निहोप शत मो४ माटे
લાવેલું ठा. १९५;
वव. २४६,२४९; दसा.४९; सुधम्म [सुधर्मन् सभ्य धर्म, पांयमा गएर ठा. ५१५,
सम. १३,१२९; राय. ४०,४४२; जीवा. १७५,१७८; सुधम्मा सुधर्मा ओनामनी सविसमा ठा. ५१५,
राय.४०,४४, जीवा. १७५,१७७थी १७९,३२०; सूर. १२६; जंबू. १४३,१४४; सुधीर [सुधीर सभ्य-धीर
सूय. ५७२,५७५ सुनंदी [सुनन्दिा शोमन-हि
नंदी.६; सुनक्खत्त [सुनक्षत्र] सुनक्षत्र, अनुत्तरोवपाध्य સૂત્રનું એક અધ્યયન, વિશેષનામ ठा. ९७४; भग. ६५१,६५६,६५७;
अनुत्त. १३ सुनक्खत्ता [सुनक्षत्रा] ५५वाडीयानी ५४२ રાત્રિમાંની બીજી રાત્રિ सूर. ६५;
चंद. ६९; जंबू. २९३; सुनग शुनक] इतर
सूय. ६६३; नाया. ३७,५१; पहा.८,१६,४५, जीवा. १८५; पत्र. १६१; जंबू. ३७,४९; दसा. ४९;
उत्त. १३९८; सुनय [शुनक] तरी
आया. ३०७,३०९,३६१,४६४; भग. १७२;
पन्न.३७८; उत्त.६६८; सुनह [शुनक] इतरो
नाया. ८५ सुनिउण सुनिपुण सारी शतशण सम. २२१;
भग. ३७२,३७३; नाया. १७६; राय. १७; सुनिगूढ [सुनिगूढ] सारी शगोपवेल _पण्हा . १९; सुनिउगहिय [सूनिगृहीत]सारीशत
निराये। पण्हा. ३८; सुनिचित सुनिचित सारी ते व्यास
पण्हा. १९; सुनिट्ठिय [सुनिष्ठित] सारी शत नियामेर दस. ३३४;
उत्त.३६, सुनिर [सुस्निग्ध] मतिस्नि पण्हा. १९;
उव. १० सुनिपुण [सुनिपुण] मातशण
पण्हा. २३; सुनिम्मल /सुनिर्मल मति निर्भ
पण्हा. ४५, सुनिम्मित [सुनिर्मित सारी शनिभाए। रायल
पण्हा. १९; सुनिम्मिय [सुनिर्मितमो 6५२' भग. ५१३; नाया. १२; पण्हा. ४१; जीवा. १८५; जंबू. ३४; सुनिया [शुनिका तरी
पन्न. ३७८; सुनिरिक्खण [सुनिरीक्षण] सारी रीत होयेल
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