Book Title: Agamsaddakoso Part 4
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agamdip Prakashan

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Page 494
________________ (सुत्तंकसहिओ) ४८ आया ५४.. पन्न. ४०७; થાય છે. सोइंदियलद्धि [श्रोत्रेन्द्रियलब्धि] "न्द्रियनी सम. २२७; પ્રાપ્તિ सोक्ख [सौख्य] सुम, माह अनुओ. १६१; ठा. ३६२,३९९,५७२,७२५,८०२,९०२; सोइय [शोचित यिंता, वियार सम.११,२२३,२२५,२२७; अनुओ. २२९,२३०; भग.५०९,५२८,५४९; सोउ [श्रोत समानार नाया.१३,१५,१४५,२०७; तंदु. १६०; पण्हा.८,१६,३७; उव. १४,६८; सोउं [श्रोतुम सम भाटे जीवा. १०५; पत्र. २४८,२५२; उत्त. १७२५; भत्त. ५,६०,१४२,१४३; सोउण श्रुत्वा समजाने तंदु. १०० संथा. ६; उत्त. ४०८; देविं. २९५,२९८; दस. ३७६; सोउमल्ल [सौकुमाय) सुमारत्व उत्त. ४५४,१११६,१२४८; दस. ५३९; सोक्खुप्पाय [सौख्योत्पाद] सुपने 64R२नार सोऊण श्रुत्वा] समजान सूर. २१३; चंद. २१७; सम. २२२,२२५; पण्हा. २६; सोग [शोक शोs, हिरी ओह.४०; सूय. ६५६; ठा.८८३,९६५; सोंड [शौण्डसुंद, सुंढवा भाभ२७नी । सम. ५१,६०; भग.३६८,४६४; જાતિ नाया. २१% उवा. ५४; जंबू. ३४४; पण्हा. १६,१७,२०,२४;उव. २१; सोंडमगर [शौण्डमकर भगरभ२७नीति राय.७१; जीवा. ११७; જે સુંઢવાળા હોય છે તે पन्न. ५४० थी ५४२; जंबू. ३४,४४; पन्न. १५९; आउ. २३; महाप.५ सोंडा शुण्डा] सुंद तंदु. ९६,१४३; जीय. १२; आया. ३४९; उवा. २३,२७; उत्त.७०५,७३७,८२४,११२४; निर. १७; सोगंधिय सौगन्धिकासुगंधवाj,संध्याविसी सोंडिया शोण्डिता] - पात्र, सामान કમળ, મણીરત્નની એક જાત, રત્નપ્રભા રાખવાનું પાત્ર પૃથ્વીનો એક કાંડ, એક નગરી दस. २१३, सूय. ६६५,६७१, ठा. १००४; सोंडियालिंछ [शुण्डिकालिञ्छ] मशिनो आश्रय सम. १६१,१६४,१६६,१६९; टा.७०२; जीवा. १०५; भग. १५२; नाया. २१,४६; सोंडीर [शौण्डीर] शूर, गंभीर, यतुर उव.५; राय.८,१०.१५ सूय. ६७० ठा.९८२, जीवा. १०५,१६१; पन्न. २८,१२६; नाया. ६५; पण्हा.४५ जंबू. ५६,१२८; उत्त. १५४०; ' उव. १७; राय.८४; सोगंधियजोणिय [सौगन्धिकयोनिक] संध्यासोक [शोक] शोs, हि , भोडनीय भनी વિકાસી કમળ યોનિક એક પેટાપ્રકૃત્તિ જેના ઉદયે જીવને શોક ઉત્પન્ન || सूय. ६८७; Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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