Book Title: Agamsaddakoso Part 4
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agamdip Prakashan
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(सुत्तंकसहिओ)
૪૭૧
सूय. ६३२
सम.४२, सुसर [सुस्वर सायेस्वर, नमनीय प्रति सुसारक्खिय /सुसंरक्षितसारीशत रक्षाए। रासस જેના ઉદયે સારો-મધુર સ્વરની પ્રાપ્તિ થાય भग.६५८;
नाया. ११; सम. १८;
पुष्फि .८; सुसवण [सुश्रवण] सभ्य श्रवए, सारी रात सुसाल [सुशाल विविमान સાંભળવું તે
सम.४५; पण्हा. १९; जीवा. १८५; सुसाहत सुसंहता हुआओ ‘सुसंहत' जंबू. ३४;
जीवा. १८५; सुसव्व [सुसर्व संपू[सार
सुसाहय [सुसंहतो 'सुसंहत' राय. २९; जीवा. १६९;
जंबू. ३४; सुसागय [सुस्वागत] सुं६२ स्वागत, शुभ- | सुसाहिय [सुसाधित सारी शतसाधनारायेस આગમન
पण्हा. ३९; भग.११२;
सुसाहु [सुसाधु/सारा साधु सुसागर [सुसागर] मे विविमान
सूय. ६७०,६७१,८०४; सम.१;
नाया. १४७; सुसाण [श्मशान] श्मन, भृतीने मागवानी पण्हा. ३५,३९,४३,४५; જગ્યા
सुसिक्ख [सु+ शिक्षारी शशिम, शिक्ष: आया. २१५,२१६,२९०;
આપવું टा. ४२८,९०१; नाया.४५
सूय. ४१४,५८०,६०४; अंत.३९,४० पण्हा. १५,३८; सुसिक्खिय [सुशिक्षित] सारीश शिवेसतंदु. ११५; संथा. ६५;
શિક્ષિત કરાયેલ उत्त.६९,१४४९;
___ठा. ६३३; अनुओ. १९३; सुसाणकम्मंत श्मशानकान्त श्मशानभ-४२ सुसिणिद्ध [सुस्निग्धामति स्निग्य आया. ४१४ थी ४२०,४६१,४७०;
पण्हा. १९; जीवा. १८५; ससाणगिह श्मशानगृहातपागवानं स्थान सुसिर [शुषिर सछिद्र, पोj भग. २००%
ठा.८१;
सम. ४९; सुसामण्ण [सुश्रामण्यास साधु५j
राय. २४,४२; भग. ११३,१३१; नाया. ३८; सुसिलिट्ठ सुश्लिष्ट सांधेसांसारी शते भनेर भत्त.८७;
હોવા તે, સુંદર सुसामण्णता /सुश्रमणता] सा भए५j भग. ५१८; नाया. १५,२७; ठा.९७८
पहा. १९;
उव. १०,३१; सुसामण्णरय सुश्रामण्यरत] सारा श्रममावwi राय. १५ थी १७; जीवा. १७५,१७६; લીન
जंबू, १४,५६,६०,१२१,१२५,१४३,२२९, उव. १६,५१,
३४४;
दसा. ९९,१०१%, सुसामाइय [सुसामायिक सभ्य सामायि सुसीइभूय [सुशीतीभूतमतिशत बनेट सूय. ६३२;
उत्त.४०५, सुसामाण [सुसामान] विविमान | सुसीमा [सुसीमा]२७विजयनीभुण्य यानी,
नाया ..
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