Book Title: Agamsaddakoso Part 4
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agamdip Prakashan
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(सुत्तंकसहिओ)
४७३
नाया. ५,३०,४०,६४,१२४,१५६;
नंदी. १४९,१५४; उवा. २,५,११,२०,२९,३२,३४,३७,४३, | | सुह शुभसा, थु, सुमहाय ४५,४९,५७,५८;
ठा. १३३,१९५; अंत..१३; . विवा.६.
भग.२२,११०,१६०,१७२,२४४,२६५, उव. २२,२७,३२,४४;
२७४,३१६,५२६,५२८; राय. १९,५४,५९;
नाया. १०८,१६९; पण्हा. ३५, जंबू. २,४६,१२२,२४१,२४३;
उव.३,४;
जीवा. १६४; निर.७; दस. ४५६,४५७; पन्न. २२६;
जंबू. ३२,३६; सुस्सूसा शुश्रूषा] Aim ४२७jत, सेवा- भत्त. ३९;
उत्त. ३०५,१३७०; ભક્તિ કરવી તે
सुहं सुखम् सुप अंत. १३; दस.४४३;
आउ.६९; सुह [सुख] सुप, आनंह, क्षेम, सु५४२, शुद्ध | सुहंसुह [सुखंसुख] सुपेसुधे, श्रमनलागे ઇન્દ્રિયવાળો
તે રીતે आया. ८२,२२८,२३०,२३५,२३९;
भग.६,२७,४६०,४६६,५२०,५३५,५८७, सूय. २८,२९,९५,३०३,३८८,३९६,४६४, ६५५,६७१,६७६,७४४;
६४५,६६५, ठा. ६८,३०१; नाया. ४,२४,२५,२९,३७,४०,४७,५३,६२, सम. २२२,२२४,२२७;
६४,६८,८२,९०,१०९; भग.११०,११३,१३२,१६७,१७२,३२०, उवा. २
अंत. १०,१३; ३२५,३६७,४६०,४६२,४६४;
विवा. १,५,१३,१५,२१,२५,३१; नाया. १५,२४,२७,३३,३५,५५,५६,६५, उव. १०,
राय. ५३,५९; ७१,७६,८१,१०३,१३४,१४४,१४७,१५५, जीवा. २९४; जंवू. ५२,८८,९५; १५७,१६३ थी १६५
निर. २,१०,१५, दसा. ९५,९६; उवा. ४७;
अंत. १३,२७, सुहकर [सुखकर] सुपने ४२नार पण्हा.८,१२,१६,१९,२४,३३,३५,
पण्हा. ४५; विवा. २३,३३; उव. १,१४,१७, सुहकाम [सुखकाम सुपने ४२७त राय. १२,४१,५२,५४;
नाया. १४० जीवा. १२६,१७९,१८५,२६७;
सुहकामी /सुखकामिन् सुपनी ४२७।४२नार पन्न. २२५,२४९,२५०,२५४,५९५;
ओह. १८६,१८७; सूर. १७२; चंद. १७६;
सुहजम्म शुभजन्मन् शुमन्म जंबू. ३२,३६,४४,५६,७६,७९,८६;
चउ.४४, निर. १७,१८; महाप. ६४; सुहजीवि [सुखजीविन्]
सु नार भत्त.४,४२,९५,१०६
ठा. ६१९;
अनुओ. १७९; देविं. ३,२२३,२९४,३०२;
सुहज्झाण [शुभध्यान] शुमध्यान-धर्भ शुsa दसा. १४,९९;
ધ્યાન दस.७२,४३७,४४०,४४२,४९५;
भत्त. ८५; उत्त. २०५,२४२,२६३,४०९,४२३,४७३,
सुहट्टि [सुखार्थिन] सुपनो अर्था ५४१,५७६,६९२,७०४,७४९;
आया. ९९
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