Book Title: Agamsaddakoso Part 4
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agamdip Prakashan
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(सुत्तंकसहिओ)
४८८
सेल [शैल/पर्वत, ५६13, शिक्षा, पत्थर, पर्वतमा || सेलु [शेलु तनुंवृक्ष બનાવેલ ઘર
भग. ३९७,८२४; जीवा. २४; टा. ३१२,३३३; सम. २१८,२२७; पन्न.३९; भग. २६०,२६४,४६७,६५१%;
सेलेसी [शैलेशीभे पर्वतठेवी निश्रावस्था, नाया. १८२,२०९; पण्हा. १६,१९;
જે ચૌદમે ગુણઠાણે હોય - જેમાં મન વચન विवा. १८; उव.२१
કાય યોગનો સર્વથા નિરોધ કર્યા પછી जीवा. १८५; पन्न. १९२,३७८; પાંચસ્વસ્વર ઉચ્ચારણ માત્ર કાળ જેટલી देविं. ४६,५०, नंदी. १४१;
होय छे अनुओ. २७०;
भग. ९३,२७५,६९३,७०३,७३३; सेलकम्म शैलकर्मन्] पत्थर-14
उव. ५५
पन्न.६२१% निसी.७६२;
दस.७५;
उत्त. १११२,११८६; सेलगिह [शैलगृह] पर्वतीय घर
सेलेसीपडिवनग [शैलेशीप्रतिपन्नक] “शैलेशी टा. ४२८; भग. २००
અવસ્થા”ને પ્રાપ્ત થયેલ सेलगोल [शौलगोल] पत्थरनो गोगो
पत्र. ३८९,५२६; सूय. ६६८; दसा. ३५; सेलोवट्ठाणकम्मंत [शैलोपस्थानकर्मान्त पाषाए। सेलघण शैलघन] पत्थरनोए।
મંડપનો કારીગર नंदी. ४६;
आया.४१४ थी ४२०,४६१,४७०; सेलपत्त [शैलपात्र पत्थर- पात्र
सेल्लार [दे. कुन्तकार] मानावनार पण्हा. ४५;
पन्न. १७५; सेलपाय [शैलपात्र मी "७५२'
सेल्ली [दे.] हो२३, २॥ आया. ४८६; उव. ४८,५०;
उत्त. १०६५, निसी. ६५५ थी ६५७;
सेव से सेवj, भोगवj सेलपाल [शैलपाल] घरोन्द्र भने भूतानंह आया. १०३,१२२,२६२,२७०,२८०,२८८, ઇન્દ્રનો એક લોકપાલ
२९२,३०५,४१९, टा. २७०;
सूय. ५७,६०,१६७,२१४,५११,५६७,५९८, सेलबंधण शैलवन्धन] पत्थरनुबंधन
६६१,७४४, आया. ४८६; उव. ४८,५०;
ठा. १३१;
सम.४३ निसी. ६५८ थी ६६०;
भग.४९८;
पण्हा . २४; सेलवाल शैलपाल हुमो ‘सेलपाल'
भत्त. १३२ . गच्छा . २९,१०२; ठा.२८७ः भग. २०१,७४४; दसा. ९०;
दस. ३७,२०९; सेलवालय [शैलपालक भेनामना से अन्य- उत्त. ९,५३,५६,८४,१२७,२०८,२२०,९८८; તીર્થિ વિદ્વાન
सेव /सेवभोगवा भग. ३७७;
सम. ४३ सेलसिहर (शैलशिखर पतनी टोय
सेवंत सेवमान] भोगवतो, सेवतो नाया. १०९; जंबू. ४६;
सम. ४३;
दस. ३७; सेला [शैला]त्री न२६ पृथ्वी
सेवग सेवक सेवा ना२ ठा. ५९७; जीवा.७९;
नाया. १७९;
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