Book Title: Agamsaddakoso Part 4
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agamdip Prakashan

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Page 470
________________ (सुत्तंकसहिओ) ૪૬૯ सम. २७० भग. ६४५; जीवा. १६४,१६७; नाया. १५१,१५९,१८१,१८३; सुसंपग्गहिय [सुसम्प्रगृहीत] ओ 6५२' पुष्फि .८; उव. ३१; राय. २८,३१; सुस शुष/ सुषु दसा. १०१; सूय. १०४; सुसंपरिगिहिय [सुसम्परिगृहीत]ो 6५२' सुसंकरिय [सुसंस्कृत] सारी शते रायेj- नाया. ११% સંસ્કારાયેલ सुसंपरिग्गहिय [सुसम्परिगृहीत]ो ७५२' महानि. ५८८; भग. ६५८,६५९; . राय. ३१,५२; सुसंगोपित [सुसङ्गोपिता मो “सुसंगोविय" दसा. १०४,१०५; दसा. १०४,१०५; सुसंपरिहिय [सुसम्परिहितासाशशतधारएस सुसंगोविय सुसङ्गोपित सारी शते छुपावा- | पुष्फि.८; ગોપવવા યોગ્ય सुसंपिणद्ध सुसम्पिनद्धासारीशतेषांधेद-धन भग. ६५८; नाया. ११; કરેલ पुष्फि. ८; तंदु. १०२, राय. ३१,५२, सुसंघट्ट सुसङ्घ/सारीशत स्पर्शल, संघटन ३८५ || सुसंभंत [सुसम्भ्रान्त अतिशय व्याग समान्त महानि. १३८२; થયેલ सुसंजमिय [सुसंयमित संयमपूर्व बोलायेस, उत्त.७२५; સમ્ય રીતે નિયંત્રિત કરાયેલ सुसंभास [सुसम्भाष] सारी रीत बोलावेलापण्हा. ३६,३८; સંભાષણ કરેલ सुसंजय [सुसंयत] सारी शते नियंत्रित ४३ उव. २१; ઇન્દ્રિય વિષયાદિ सुसंभिय [सुसम्भृतसारी ते लरेस सूय. ५१०,६३२; उत्त. ४७२; सुसंठिय [सुसंस्थित साय २२ २३८, सारी सुसंवुड [सुसंवृतसरी शता , सभ्यसंवरए। રીતે રહેલ કરેલ जंबू. ३४४, सूय. ११०,१४०; दस. ४९१; सुसंतुट्ठ सुसंतुष्ट] सारी शते संतोष पास-तुष्ट उत्त. ९१,४०१,५०६; થયેલ सुसंवुय [सुसंवृत] शुभो 6५२' दस. ३७५; नाया. १५; उव. ३१; सुसंधित [सुसंहित] सारी शते सांधे-संधि जंबू. ५६,१९४; दसा. ९९; કરાયેલ सुसंहत सुसंहता अतिशय संष्टि सूय. ६४५,६६५ पहा. १९; सुसंपउत्त सुसम्प्रयुक्तरीत योठे, प्रयत | सुसंहय [सुसंहतो 6५२' કરેલ पण्हा. १९; उव. १० उव. २१,३१, राय. २३,३१; सुसक्कय [सुसंस्कृत सारी शते सं२७२ राये। जीवा. १६४,१८५, दसा. १०१; . जीवा. १८५; सुसंपग्गहित सुसम्प्रगृहीत] सभ्यतया अडए | | सुसज्ज सुसज्ज] सारी शते तैयार थयेस, सभ्यકરેલ તયા સજ થયેલ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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