Book Title: Agamsaddakoso Part 4
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agamdip Prakashan
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૪૬૦
पण्हा. ३४;
सुयधारत [श्रुतधारक] लुखो 'पर' पण्हा. ४५;
सुयनाण [ श्रुतज्ञान] खो 'सुतनाण' ठा. ६४ थी ६६,७१, १६३, ५०६,
सम. २२०;
भग. ६८, १४४, २८६, ३९१,३९३ थी ३९६, ४४५, ४४७, ४५०, ५७७, ८८४, ९०६, ९६५, ९८०,९९०, ९९९;
उव. २०;
राय. ६४;
पन्न. १८३,३०८, ३१८, ३१९, ४६ १,५००, ५०४, ५७२,५७३;
भत्त. ८८;
उत्त. १०९८;
नंदी. ५३,९३, ९४, १२९, १५७; जो. नंदी. १; अनुओ. १-३; सुयनाणपरिणाम [ श्रुतज्ञानपरिणाम ] श्रुतज्ञाननुं પરિણમવું તે पत्र. ४०७;
सुयनाणलद्धि [श्रुतज्ञानलब्धि] श्रुतज्ञाननी प्राप्ति
अनुओ. १६१; सुयनाणविनय [ श्रुतज्ञानविनय] श्रुतज्ञाननो
આદર-બહુમાન
उव. २०;
सुयनाणसागर [श्रुतज्ञानसागर] श्रुतज्ञान३ची समुद्र देविं. १२;
सुयनाणारिय [श्रुतज्ञानार्य] ज्ञान - आर्यनो खेड लेह
पन्न. १७५;
सुयनाणावरण [ श्रुतज्ञानावरण] श्रुतज्ञानने આવરક કર્મવિશેષ
सम. ४२, १००;
अनुओ. १६१; सुयनाणावरणिज [श्रुतज्ञानावरणीय ] यो उपर
टा. ५०७;
भग. ४४५;
सुयनाणि [ श्रुतज्ञानिन् ] श्रुत ज्ञानने भएअर,
શ્રુતજ્ઞાનધારક
ठा. ५२६,७८३; सम. २३२; भग. २८४,३९१,३९३ थी ३९६,५६४,८५७,
९७८, ९९८;
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पण्हा. ३४;
उव. १५;
जीवा. ३६, ४०, ४६, ४९, १०४, ३३२, ३८९;
आगमस कोसो
पन्न. २७२, ४०७,४८२,५७३; नंदी. १५४, १५७;
सुयनाणी [श्रुतज्ञानिन् ] लुभो '५२'
पिंड. ५६५,५६६;
सुयनिस्संद [श्रुतनिस्यन्द] श्रुतनुं असुं ते
गच्छा. १३६;
सुयनिस्सिय [ श्रुतनिश्रित] सांभजवा અનુભવવાથી થયેલ જ્ઞાન
नंदी. ९५,१११;
ठा. ४८;
सुयपुच्छ [शुकपिच्छ] पोपटनुं पीछे
राय. १५;
जीवा. १६४;
सुयपुव्विया [श्रुतपूर्विका ] श्रुतपूर्वऽनुं भतिज्ञान नंदी. ९३;
सुयपोस [शुकपोसक] पोपट पाणनार निसी. ६०१ ;
सुभत्ति [ श्रुतभक्ति ] शास्त्र - भागभनी लस्ति
नाया. ७९;
सुयमय [ श्रुतमद] श्रुतनो गर्व, आठ प्रहारना મદમાંનો એક મદ
सम. ८;
सुयमाण [ स्वपत्] शयन उरतो
भग. ८४;
सुयमाण [श्रृण्वत् ] सांभजते
नाया. १४५;
सुयमुह [ शुकमुख] पोपटनुं भुज-यांय
भग. ११५;
राय. ७७,७९; दसा. ४९;
सुयरहस्स [श्रुतरहस्य ] सिद्धांतनुं रहस्य
संथा. ७७;
सुयव [श्रुतवत् ] श्रुतवानू
उब. १३;
जंबू. १२२;
अनुओ. २०, २१,
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भग. ४३०;
सुयवतिरित्त [श्रुतव्यतिरिक्त ] श्रुत- सिवायनुं भग. ९०७,९४३;
सुयववहार [श्रुतव्यवहार] पांय व्यवहारमांनी खेड
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