Book Title: Agamsaddakoso Part 4
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agamdip Prakashan

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Page 446
________________ (सुत्तंकसहिओ) ४४५ सुणित्ताण [श्रुत्वा समणीने अंत. २७; विवा. १९; गच्छा. १३७; जीवा. १८५, जंबू. ३७,४४; सुणित्तु /श्रुत्वा सभणीने गच्छा. १३१; दसा. ३५ दस. ५२५; सुत [श्रुत] सामणेj, श्रवा ४२८, व्याऽ२९ut सुणिया श्रुत्वा समणीने शास्त्र, आराम, सूत्र, अवयन, शion, उत्त.६; શ્રુતજ્ઞાન, શ્રત વ્યવહાર सुणी शूनी तरी सूय. ४२८; सूय. १७२; दसा.१११%3; टा. २००,२५४,४५९,५३९,७११,७८६; उत्त. ४; सम. ३८३; दसा. १४,४८,७०; सुणेत शृण्वत्] img सुतअनाणि श्रुताज्ञानिन्] श्रुत मनी, श्रुतने राय.७५; નહીં જાણતો सुणेत्ता [श्रुत्वा] समान ठा. ७८३ सूय. ३०५; ठा. १७३; सुतअन्नाण [श्रुताज्ञान] श्रुतर्नुमशान नाया. १०९; अंत.५; पन्न. ३०९ थी ३११,३१७,५७२; विवा. ५ राय. ५४; सुतअनाणि [श्रुताज्ञानिन्] श्रुतने नही तो, उत्त.३७८; શ્રુત-અજ્ઞાની सुणेत्तु [श्रोत] समनार पन्न. २७२,३१८,३२०,५७३; सूय. ४२४; उत्त. ५१६; सुतंग श्रृताङ्गा श्रुतनो विभाग सुणेमाण शृण्वत्/Ainjते सम. ३८३; नाया. १७७; उत्त. ५१६; सुतत्त सुतप्तसारी शते तपेस सुणेयव्व [श्रोतव्य समायोज्य सूय. ३१६, पण्हा. ४३; सुतनाण श्रुतज्ञान] श्रवथी यतु शन, सुण्णगिह [शून्यगृह शून्य घर પાંચજ્ઞાનનો બીજો ભેદ निसी. ५६५,९७५; पन्न. ३०९,३११,३१३,३१५,३१९,३२०, सुण्णगेह [शून्यगृह/शून्य घर ५७२,५७३; ओह. २३२ सुतनाणि श्रुतज्ञानिन्] श्रुतशनियुत सुण्णसाला [शून्यशाला] शून्य पन्न. २७२,३१५,३१८ थी ३२०,५६६; निसी. ५६५,९७५; सुतनु सुतनु उत्तम शरीर, २६ शरीर सुण्हत्त स्नुषात्व] पुत्रवधुपj - देविं. १४; भग. ५५१; सुतवस्सि [सुतपस्विन] सारी शत त५२नार सुण्हा स्नुषा] पुत्रवधु सूय. २५८,४६९,४७५,६०५,६०६,७०१ थी आया. ६३,८८,३४६,३५६,३६७,३८३, ७०३,७५३; ३८४,३९६,४०२,४०५,४१४,४२७,४३५, सुतवस्सित सुतपस्यिता सारी शते त५४२ ४८०,४८६, ठा. २३१; सूय. २५९,६४७,६५३,६५८,६६७,६७३; सुतवस्सिय [सुतपस्विक] सारी शत५४२नार ठा. १९०,३४५; भग. ४०२,५३४; सम.८५; दसा.७५; नाया. ६०,६२,७५,९२,१५४,१७५; || सुतवित सुतप्त सारी शते तपेक्ष Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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