Book Title: Agamsaddakoso Part 4
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agamdip Prakashan
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(सुत्तंकसहिओ)
४४७
दसा. ५३;
उत्त. १०९१,१०९६; सुत्तत्त सुप्तत्व] "सुत"५j
सुत्तरुयि [सूत्ररुचि भो 6५२' भग. ५३६;
- भग. ९६८; सुत्तत्तय सूत्रत्रय सूत्र-त्रय
सुत्तवेयालिय [सूत्रवैचारिक] भानो मेह पन्न. २९९;
पन्न. १७५; सुत्तत्थ सूत्रार्थी सूत्र समर्थ
सुत्तसुयधम्म [सूत्रश्रुतधर्म) सूत्र३५ श्रुत धर्म महाप. १३३; गच्छा. १४;
टा.७२; ओह. २००,२२४;
सुत्तागम [सूत्रागम] सूत्र३४ी माराम नंदी. ४२,१०१,१६२,
अनुओ. ३०९; सुत्तत्थपाढय [सूत्रार्थपाठक] सूत्र भने अर्थने सुत्ताणुगम [सूत्रानुगम] सूत्रनो संबंध ભણનાર
अनुओ. ३३७; नाया. १५;
सुत्तालावगनिप्फन सूत्रालापकनिष्पन्न सूत्रना सुत्तत्थपुच्छग [सूत्रार्थपृच्छक सूत्र ने मर्थ || આલાવામાંથી નિપજેલ સંબંધિ પ્રશ્ન કરનાર
अनुओ. ३२५,३३६; ओह. ३९;
सुत्ति शुक्ति] शुक्ति सुत्तत्थविसारय [सूत्रार्थविशारदासूत्रमने मर्थन
जीवा. १८५; વિશારદ-પારગ
सुत्तिमई [शुक्तिमती] मे आयीन रा४ानी संथा.७७;
पन्न. १७०; सुत्तनिबद्ध [सूत्रनिवद्धासुत ही 43 mia सुत्तिमत्तिया [सुक्तिमतिका] ओ ७५२ भत्त. ८५;
दसा. ५३; सुत्तनीईय [सूत्रनीतिक]सूत्रनी-in, uसन्याय सुत्थिय [सौवस्तिक ज्योतिष् विशेष, से भत्त. ५३;
હરિત વનસ્પતિ, સ્વસ્તિક सुत्तंपडिकुट्ट [सूत्रप्रतिक्रुष्ट] सूत्रांनी निषेध उवा.८;
संथा. १५; કરાયો છે તે
सुत्थिय [सुस्थित] सारी शते रहे। पण्हा. ३८;
जीवा. २०८; सुत्तपरिवाडि [सूत्रपरिपाटी सूत्रम
सुदंसण सुदर्शनाठेर्नुशनसुंघरछेते-भेपर्वत, सम. ५२,१६७,२२८; नंदी. १५०;
ધરણેન્દ્રના હાથી લશ્કરનો અધિપતિ, सुत्तपासय [सूत्रपाशक] सुतरनोइंडो
“અંતકૃદસા' સૂત્રનું એક અધ્યયન, કેટલાંકના निसी. ७४७,७४८,११०९,१११०;
વિશેષ નામ सुत्तफासियनित्ति सूत्रस्पर्शिकनियुक्तिसूत्रने सूय. ३६०,३६५;
સ્પર્શતી-છણાવટ કરતી નિયુક્તિ-વ્યાખ્યા ठा. ९६,४३८,७७०,८४५,९७२; अनुओ. ३३७,३४०
सम. ३९,२६६,२७४,२७५,३१३,३२८, सुत्तय सूत्रका सूतर
३३५,३७०; निसी. १८६;
भग.५१४ थी ५१६,५१८,५२३,५२४,७२७, सुत्तरुइ[सूत्ररुचि सूत्र-शाखनी यि
७४२,
नाया. ६७; ठा. २६१,९६२, उव. २०;
अंत. २७,३४, जीवा. २२४; पत्र.१८१
पत्र. २३५,२६०,३०२,३०३,३०६,
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