Book Title: Agamsaddakoso Part 4
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agamdip Prakashan

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Page 372
________________ (सुत्तंकसहिओ) ૩૭૧ सल्लरहिय [शल्यरहित] माया-निया भने सूर. ४२ थी ४९,५२ थी ५४,५६,६९ थी ७१, મિથ્યાત્વશલ્ય વગરનો ८५ थी ८८.११२; संथा. ३७; चंद. ४६ थी ५३,५६ थी ५८,६०,७३ थी ७५, सल्लहत्ता [शाल्यहत्थ] -siटो वगेरे पानी ८९ थी ९२,११६; ક્રિયા દર્શાવતું શાસ્ત્ર, આયુર્વેદ નામક વૈદકીય जंबू. ३४,१२५.२८५,३०२,३०६,३२९, ગ્રંથનો એક ભાગ ३३१,३३२: टा. ७२२: गणि. १२,२२,२५,३९; सल्ली [दे. भु४५रिसपना में 10 दसा. ९६,९९,१०३ थी १०६; जीवा. ५३; उत्त. १०४; अनुओ. २४३; सल्लुद्धरण [शल्योद्धरण] शल्य ढते, अरेस | | सवणता [श्रवण] श्रवए।, सामावू ते, પાપનું પ્રાયશ્ચિત્ત કરવું તે, મહાનિશીથ સૂત્રનું અર્થાવગ્રહનું એક નામ પહેલું અધ્યયન ठा. ५२८; पन्न. ५०२; महानि. १,५५.६८; सवणया [श्रवण/श्रवणता] हुमो ७५२' ओह. ११४५,११४६: सूय. ८०६: सव [श्रवस] जान, च्याति ठा. ६४ थी ६६,१०२,१६३; सूय. १८४: भग.९८,११२,१३२,४४५,४४९,४५०, सव [श्रु समg ४६०,४६३ थी ४६५,५०८,५२६,५२८, भग. ६६५; उव. १९; ५३५,५८७ः जंबू. ७५; नाया. २०,३१,३२,३४,३६,४९,६५, १५० सवंत [स्रवत्] २ ते थी १५२,१६२,१६५,२२०; आया. ९५; उवा. ५,२०.२९,३२ थी ३४,३७,४९, ५७,५८: अंत. १३,२०; सवंतीकरण [सवर्णीकरण] [युत ४२ते विवा. ३३: उव. ११,२७.२८: निर. १०ः राय. ५४,५९.६१,६५,६६; सवक्कसुद्धि [स्ववाक्यशुद्धि/पोतावास्यनी शुद्धि पन्न. ५०० थी ५०२,५०४,५०५: કરવીતે, “દસયાલિય” સૂત્રનું એક અધ્યયન निर. ७,१०: नंदी. ११५: दस. ३४८: सवत्त [सपत्नशत्रु, विरोधी सवच्चवाय [सप्रत्यावाय] ओ ‘सपच्चपाय" ओह. २७६; तंदु. ५९ः सवत्तिया सपत्निका] सपत्नी, शोऽय सवण [श्रवण] 51न, Airaj ते, सत्तावीस पिंड. ५०७: નક્ષત્રમાંનું એક નક્ષત્ર सवत्ति [सपत्नीसो 6५२' सूय. ८०३,८०४ ठा. ३४३: उवा. ४९,५० ठा. ९०.२०३,२४१,४४९.६९१: विवा. ३३: सम. ३.१३.२२३,२२४: सवत्तिसमाण [सपत्नीसमान] शौस्याना स२५ो, भग. १३५.१३६: पण्हा. १९; જેમ શોક્ય બીજી સ્ત્રીના છિદ્ર જુએ તેમસાધુના उव. १०: राय. ३९: ગુણ ઢાંકી દોષ બતાવે તેવા શ્રાવક जीवा. १७७,१८५: ठा. ३४३; Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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