Book Title: Agamsaddakoso Part 4
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agamdip Prakashan
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૪૩૬
आगमसद्दकोसो
- ४९२.
सुइ [श्रुति] श्रुति, श्रवए। खंत, वे६, सलोध, || दस.४६२, કાન, વિશેષનામ
सुउमाल [सुकुमाल] ओ 'सुकुमाल' नाया. ४९,१२५,१७६;
उव. ३१;
दसा. ९९ः उत्त. ९६,१०३,१०५,३०८,३०९;
सुए [श्वस्मावती सुइ स्मृति यास्त, स्मरए।
आया. ४८०
सूय. १४८ विवा. १६,२५;
दस.४९२;
उत्त. ८०,४६८; सुइग शुचिका पवित्र
सुओयार [सुखावतार] सो ‘सुउत्तार' जंबू. ४३,५६;
राय. ३२; सुइत्ता [सुप्त्वा] शयन शने, सुने
सुंक [शुल्क ३२, ४ात ठा. १७३;
नाया. ८६,८८ थी ९२,१४८,१६२; सुइब्भूय शुचीभूत] पवित्र थयेट
विवा. ३३; राय.६२; उवा. १४
सुंकलितण [शूकरीतृण] तृए। विशेष सुइभूय [शुचीभूत पवित्र थयेटर
पन्न. ६९; सूय. ६७०
सुंकिय [शोल्किक] शुभ सेना२, ४ात ना? नाया. २५,४६,५१,५७,८६,१४४,१५८, નિયુક્ત પુરુષ १७०,१७६,२१०;
महानि. ११५१४; विवा. २२,३३ उव. १२;
सुंगा [शौङ्का] विमानक्षत्रनुं गोत्र राय.८१,८२; जंबू.७६;
जंबू. ३१३; पुष्फि . ५,७;
सुंगायण [शौङ्कायनामो 6५२' सुइय शुचिक] पवित्र
सूर.६९:
चंद.७३; भग, ५१८;
नाया. १५,१८,२२; सुंठ [शुण्ठ] अनामनुपतिनुं वृक्ष पण्हा. ३६;
भग.८१९; पन्न. ६९,१२८; सुइर [सुचिर] उभे
सुंठी शुण्ठी] | उत्त. १९६;
भग.७४०; पिंड. १६१; सुइसमायार [शुचिसमाचार] पवित्र माय२९।२j सुंदर [सुन्दर] मनोहर, २भए।य, शमतुं आया. ४०६; उव. ४८;
ठा. ३७२ थी ३७४; सम. २७३,३२७; सुई शुचि] पवित्रता
भग.४६४,४६५,५१२,५२०,५४९,५८७; भत्त. १४३;
नाया. २५,१३४; पण्हा. १९; सुई [श्रुति] श्रुति, श्रवए। २ते
विवा. ११;
उव.७,१०,५०; संथा.७;
राय. ५०,८२ जीवा. १८५; सुईभूय [शुचिभूत पवित्र थयेस
जंबू. ३४,१०१,३४४: उव. २८; राय. ४२;
भत्त. १२१; दसा. १००: पुष्फ.३;
उत्त. ४३०,६३१: नंदी. १४ सुउत्तार [सुखोत्तार] साथी तरी शयते || सुंदरंग [सुन्दराङ्गाना अंग सुंघरछेते राय. ३२ जीवा. १६५;
ठा. ८७२;
नाया. १०,११,४३; जंबू. १२८,१२९;
विवा. २,४; सुउद्धर [सूद्धर साथी 6Nढीशाय || सुंदरंगी /सुन्दराङ्गी] सुं४२ शरीरवाणी स्त्री
उवा. ५;
उव.७;
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