Book Title: Agamsaddakoso Part 4
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agamdip Prakashan

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Page 398
________________ (सुत्तंकसहिओ) ૩૯૭ सामाण [सामान समान, ठेवा महाप. ५८: नंदी. १५०; सामाणिअ [सामानिक विविशेष-४ छन्द्रना સમાન દરજ્જાવાળા હોય છે सम. ५०.९९,१३८.१४२,१४८,१५९,१६३: सामाणित [सामानिक हुमो 6५२' ठा. १६२: सामाणिय [सामानिक मो. 6५२' टा. १४२.१६२,३४६,५६०ः भग. १५२,१५३,१५५,१५६.१५८,१५९, १७०.१७२,१७६.४८८,६१७; नाया. १०१,१४५,२२०; उवा. २५: राय. ५.१६ थी १७.४१ थी ४६ः जीवा. १७०,१७२,१७४,१७९ थी १८१, १८६.१८७.१९१,१९४,२००.२०५,२०८, २०९.२८८.३२०: पन्न. २०३.२०५,२१०,२१७,२२५ थी २२८; सूर. १२६.१९२: चंद. १३०,१९६; जंबू. १५.४६,१२८,१४३,१५१,१६२,२१२. २१४.२१५,२२७थी २२९,२३२,२३६ थी २३८,२४०,२४३,२४४,२६८; पुप्फि. ३.५,८ थी १०; पुप्फ. ३; अनुओ. ३२९: सामाणियत्त [सामानिकत्व] 'सामनि' ५j भग. ९१३: सामाय श्यामाका रखें धान्य राय. १५; जीवा. १६४; सामायारिय [सामाचारिक साधुनी सामायारीन આચરણ કરનાર अनुओ. ८१.१४२,१४४; सामायारी [सामाचारी] भो ‘सामाचारी' ठा. ९५९.९६० सम. ११२; भग. ९५६,९६०,९६१; . नाया. १७७; गच्छा. ११,१५,१८,५३; ओह. १,१७,१८४,२१९,८८० सामायारीविराहय [सामाचारीविराधक साधु સમાચારી-આચરણાની વિરાધના કરનાર गच्छा . ११: सामास [श्यामाश] सi४ नमो नवाj आया. ८८: सूय. ६४७.६६५: सामासिय [सामासिक] 'समास'थी पनेतुं अनुओ. २४७.२४९: सामि स्वामिन्स्वामी, अधिपति, सी, नाय, ધણી, ગુરુ, ભગવંત મહાવીર सम. २२२,३२७ भग.१०६.१३४,१५२.२१६,३७२.३७३, ४३८.४५१,४६०,४६५,४८७,४८८.५०८, ५१४.५२३.५२८,५३०,५३५,५८७,६३८, ६४५.६५५.६७३, नाया. ११,१९,२०,३३,४९,६४,८६,८८ थी ९१.९३.१४४.१४५.१४८.१४९,१६४, १७६,१७७.१७९,१८५,२२० थी २२२, २२५,२२६: उवा. ११,३८,३९,४५,४९,५७,५८; अनुत्त. १,१०,१३; पण्हा. ८,१९; विवा. १,९,२२,२३,२५,२९,३०,३३,३७ थी ३९; उव. ३०; राय. ४,५२,५७,६२,६५,६६; सूर. १,४०; चंद. ४४; जंबू. १,५६,६१.७३,७५ थी ७७.७९,९२. १०३,१०५,१२१,१२२,२४० निर.७,१०,१७,१८; कप्प. १: पुप्फि. ३,५,८ थी १०; पुष्फ. ३: दसा. १६,५४,९५,९६,९८,१००; उत्त. ८७; सामिक [स्वामिक] नाथ पण्हा. १९; सामिणी [स्वामिनी] स्वामिनी, घीयाए दस. ३०९; सामित्त [स्वामित्व] स्वामी५j सम. १५७; Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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