Book Title: Agam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra Part 02
Author(s): Rushabhdev Keshrimal Jain Shwetambar Sanstha Ratlam
Publisher: Rushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha

View full book text
Previous | Next

Page 233
________________ Aware अतिक्रमणा । इमा कालभूमीए पडियरणविधी-इंदिगहि उवउत्ता पडियरंति, दिसत्ति जत्य चउरोवि दिसाओ दिसंति, उर्दुमि जदि तिण्यिा लाकालग्रहणं | तारा दिसति,जदि पुण अणुवउत्ता अणिटो वा इंदियविसओ विसत्ति दिसामोहो दिसाओ तारगाओ वा ण दीमति वासं वा ॥२३॥ पडति असमाइयं वा जान तो कालबहो । किंच-जदि पुण० ।। १४६९ ॥ तेर्सि चेव गुरुसमीवानो कालभूमि गच्छंताण अंतरे I# जदि छीतं जोती वा फुसनि ना नियति, एवमादिकारणेहिं अव्याहता ते निव्वापातेण दोवि कालभूमिं गता संडासगादि | | विधीए पमज्जिमा निमण्णा उद्घाहिता वा एक्केको दो दिसाओ निरिक्संतो अच्छति । किंच-तत्थ कालभूमीए ठिता सज्झाय. ॥ १४७०।। तत्थ समायं अकरता अच्छंति कालवेलं च पडियरन्ता, जदि गिम्हे तिणि सिसिरे पंच वासासू सत्त कणगा (पेक्खेज्जा तथावि नियनंति,अहवा निवाघानेण पत्ता कालम्गहणवेला तो ताहे जो डंडधारी सो अंतो पविमित्ता साधुसमीपे मणतिबहुपडिपुण्णा कालबेला मा बोले करेह, रत्थ मंडगोचमा पुवमणिता कजति, आघोसि ॥ १४७१ ।। जहा लोगे गामादिगंडगेण आघोसिते बहूहिं सुने थोयेसु असुतेसु गामादिवितं अतेसु डंडो भवति, बर्हि अमुते गडगस्स डंडो पडति, नहा | इहंपि उवसंहारेतब्वं, ततो डंडघरे निम्गते कालग्गाही उत्थेति । सो कालम्गाही इमेरिसो पियघमो० ॥ १४७२ ।। पियधमो दढधम्मो य, एत्य चतुमंगो, नन्थिमे पढममंगेनिच्चं संमारभयुबिग्गचिसो संविग्गो, बज्ज-पावं तस्स मीरू वज्जमीरू, जया हैं तं न भवति तथा जयति, पन्थ कालविधिजाणको खेतण्णो, ससमतो- अभीरू, परिसो साधू कालं पडिलहेति, जग्गनि गृहाति ॥२३॥ | चेत्यर्थः, तेय ने बेलं पडियरंता एमेरियं कालं तुलेंनि-काल संझां०॥ १४७३ ॥ संझाए धरतीए कालग्गहणमाढतं, कालग्गहणं संग्राए व जं सेमं एनो दोषि जथा मम ममप्पति तथा कालवेलं तुलेंति, अहया निमु उतरादियासु समझं गेहंति, चरिमत्ति SESASTER

Loading...

Page Navigation
1 ... 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328