Book Title: Agam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra Part 02
Author(s): Rushabhdev Keshrimal Jain Shwetambar Sanstha Ratlam
Publisher: Rushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha

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Page 238
________________ प्रतिक्रमणा तिग मवति, पिनियपदति अपादपरं कालदुर्ग मनात अमायाविनः,कारणे अगृहाणस्येन्यर्थः, अहवा उकोमेण चतुष्कं भवति,15, बालमहर्ष ध्ययन तू जहणे हाणिपदे तिगं भवति, एकमि अगहित इत्यर्थः, चितित हाणिपदे कते दुगं भवति, योरग्रहणमित्यर्थः, एवं अमायाविणो ॥२३॥ तिणि वा अंगण्डतस्स एको भवति, अहवा मायाविमुक्तस्य कारणे एकमपि कालं अगृहतो न दोषो-प्रायश्चित्तं मवति ।। कई वा | पुण कालचउक० १, उच्यने-फिडियं ।। १४९२ ॥ पादोसियं काल घेत्तुं सम्बे पोरुमि कातुं पुण्णपोरुसीए सुत्तपाढी सुवन्ति, | अत्यधितगा उकालपाढियो य जागरंति जाब अङ्करसो, नतो फिडिते अद्धरने काल घेत्तु ते जागरयिया सुर्वति, वाहे गुरू उत्ता गुणेति जाव परिमो जामो पत्तो, चरमजामे सव्वे उद्वेत्ता वेरत्तिय घेत्तुं सज्झायं करोति, ताहे गुरू सुवंति, पत्ते पामातिए काले जो पामातिय काले घेच्छिति सो कालम्स पडिक्कमितुं पामातियं कालं गेहति, सेमा कालवेलाए पामाइयकालस्स पडिकमंति, ततो आवसयं करेति । एवं चतुरो काला भवंति । तिण्णि कही, उच्यते, पामातित अगहिते सेसा तिष्णि, अहवा-गहितमि०॥१४९३शवाचिए अगहिरो सेसेसु तिसु गहितेमु तिष्णि, अरत्तिए वा अपहिते तिष्णि, पादोसिए वा अगहिते तिण्णि, दोणि कह, उच्यते, पादोसिजट्टरक्षिण्मु गहितेसु सेसेसु अगहितेसु दोण्णि मवे, अहवा पादोमिते वेरलिए गहिते दोणि, अहवापामातियपादोसियसल गहिरोसु सेसेसु अगहितेस दोण्णि, एत्य विकप्पे पादोसिएण चेव अणुवाहतेण उवयोगतो सुपडिजुग्गितेण सम्बकाले पढतिचिन दोसा, आवा अनुरत्तियवेरतिय गहिए दोष्णि, बहना अहरचियपामाइएसु गहिरएस दोष्णि, बदा ऐका तदा अण्णता गेहति । R१६॥ कालचउककारणा इमे', कालचउकग्गहणं उस्सग्गतो विधी च, अहवापादोसिये गहिते उवहते अडरचं पे समायं करेंति, दमि-18 विउपहते बेरशिय घेतुं सज्झार्य कौति, पामातितो दिवसहा घेतखो चेव, एवं कालपउ दिई, अघुबहते पुष पादोसिते सुपहि

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