Book Title: Agam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra Part 02
Author(s): Rushabhdev Keshrimal Jain Shwetambar Sanstha Ratlam
Publisher: Rushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha

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Page 266
________________ कायोत्सर्गा ध्ययनं ||२६४ || तथं संपडिव्यज्जिम्सामि, साहुणाय फिर चिंतेत लम्मासखमणं जान करेमि ?, ण करेज्जा, एगदिवमेण ऊणगं करेतु जाव पंचमास पंच ३-२-१ अजमासों चउरथं आयंबिलं, एवं एगडाणं एगासणं पुरिमङ्गुणिन्त्रीय पोरुसी णमोकारोति अज्जसणगाओ य किर कलं जोगवडी कालवा गर्न जीरियासाग विराभिये महति अप्पा य मिद्धाडितो भवति, जं समत्यो कातुं तं हिदए करेति, अण्णे भणति एवं चितन्त्रं किं मए पच्चक्खातव्त्रं ?, जदि आवस्यमा दियाणं जोगाणं सकेति संघरणं कर्तु ता अम ववसति, असतो पुरिमङ्गायंबिलेगट्टाणं, असकेंतो निव्वीय असतो पोरूसमादिविमासा, अह चउत्यभत्तिओ बस छमतिओ अट्ठमीमच्यादि विभामा उम्मारेता संघ का पच्छा वंदित्ता पडिवज्जति सध्वेहिवि णमोका रहते है समगं उतव्यं, एवं सेसएसुवि पच्चक्खाणिसु, पन्छा तिष्णि धुनीओ अप्पसदेहिं तदेव मण्णंति जया घरकोइलियादी सत्ता ण उहेंति, कालं वंदिता निवेदिति । जदि वेतियाणि अन्थि तो वंदन्ति धुतिअवसाणे चैत्र, पडिलेहणा मुहणंतगादि संदिग्रह पडिलेहेम बहुवेला य । एवं च कालं तुलेतूणं पडिकमंति जथा नतिया धुती मणिता पडिलेहणवेला य होति । आह— कि निमिनं विवरीनं पाठक्कमिज्जति जथा सायं गतं तथा पदेवि पडिकमिज्जतु १, उच्यते, कोइ साहू णिदाइमो होज्जा तो विधाभिभूतो न तरति विनेतुं, अविय अंधकारे वंदेताणं आवडणादयो दोसा, असंखर्ड व तुमं ममं उवरिं पडसि, मंदघम्मा य कितिकम लोवेंति, एवमादि, जाव पुण तिष्णि काउस्सग्गा कीरति ताव पभायं होति, एमेण कारणेण विवरीतं कीरति । एवं ता देवसिए भणितं । परिस्व इमा विधीदेवसिय जाहे पडिकंता णिवेदुगपडिकमणेणं ताहे गुरू निविसंति, ताहे बंदिता मर्णति-इच्छामि समासमणो ! पक्खियं सोमण, एवं जनं निष्णि उमेणं सध्ये, पच्छा गुरू उसणं अहारायणियाण खामिति, इनरेवि जथाराहणियाए खामति, मदेवि 216 प्राभातिकादिप्रति क्रमणानि ॥२६४॥

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