Book Title: Agam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra Part 02
Author(s): Rushabhdev Keshrimal Jain Shwetambar Sanstha Ratlam
Publisher: Rushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
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बामणाविधिः
कायोत्समो भणसि इम-देवसिय परिकं पक्खियं पडिकमावह,ताह पविख्यं पडिक्कमणसि कडिज्जति, कविता मूलगुणउत्तरगुणेहि खडित ध्ययन
विराति तस्स पच्छित्तनिमित्तं तिथि उस्साससताणि काउस्मग्यो कीरति, पारिते उज्जोयकरन्ति, आवविठ्ठा मुहर्णतगं पडिलहत्ता बंदंति, पच्छा पक्खियं विणयाइयारं खामेति बितिए, जथा राया जाणमवि पूलमाणएणं एवं इमेवि सीसा कालगुणसंघवं करोते । पियं च मे हवाण सच्चं सोमणो कालो गतो अण्णोवि एवं चेव उवाढतो, गुरुवि भणति-साधूर्हि सम, ततिए खमारितारबोषिताण चेहयवंदणं च साहवंदणं च निवेदति, इच्छामि ममासमणो! पुषि चेतियाति वंदित्ता इत्यादि कठ, गवरं समाणा-पुङवासी वसमाणा- जवविगप्पविहारी, आयरिओ मणति-अहेपि वदामि । चउत्थे अप्पगं गुरुसु णिवेदेति, तत्थ जो अविणओ कप्तो त खमाति-इच्छामि स्वमासमणो! तुज्यं संतियं अहा कप्पं०, आयरिओ मणति-आयरियसंनियं, अहवा
गच्छसंनियंति, पंचमे मणति--ज विणएह तं इच्छामि मन्वं, इच्छामिम्बमासमणो! कताई च मे कितिकमाई जाव तुन्भण्ई हैनबतेपसिरीए इमाओ चाउरंतसंसारकताराओ साहत्य णित्वरिस्सामोतिकटु सिरसा मणमा मत्यगणवंदामो
|चिकटु, गुरू आह-आपरिया णित्यारगा, एवं सेसाणवि सव्वेसि साहणं खामणवंदणगं पढमगं, जाहे अतिवियालो वाषांतो वा | ताहे सतहं पंचण्हं निण्हं वा । पच्छा देवसिय पडिकमति । पडिकताणं गुरुसु वंदिएम बहुमाणिमाओ तिणि धुतीओ आयरियां | मणति, इम य अंजलिमउलियइत्यया एककाए समनाए णमोकार करेंति, परुछा सेसगावि भणन्ति । तादिवसं ण मुत्तपोरुसी पनि 5य अस्थपारुसी, धुतीओ भण्यंति जीस जत्तियाओ । एवं चेव पातुम्मासिएवि, णवरं इमो विससो-चाउम्मासियकाउस्सग्गो पंच
सनानि उस्मामार्ण, मंघन्मरिण च अदुमहम्मं उम्मामाणं, एम विममो, चाउम्मासियमवच्छरिएसु सवेहि मूलउत्तरगुणाप
॥२६५॥

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