Book Title: Agam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra Part 02
Author(s): Rushabhdev Keshrimal Jain Shwetambar Sanstha Ratlam
Publisher: Rushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
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प्रत्या
ख्यान
चूर्णिः
॥३०२॥
सयिणादिसु उल्लंघणमाति वा करेज्जा, ण वट्टति सामातियस्स, सतिअकरणया नाम अनं करोति, अहवा ण जाणति-किं सामातियं क क १, विभा, ग्रामातियरस अणवद्वियस्स करणया णाम सामातियं काऊणं पुणो तक्खणं चेत्र पारंतो चैत्र वच्चति ण वट्टति एवं जदि चिरं अच्छति तो करेति, अहवा सव्वं वावारं काऊणं जाधे खणितो ताहे करेति तो से ण भज्जति, एवं विभासा । धन्ना जीधेसु दयं करेंति धना सुदिट्टपरमत्था | जावज्जीवं व दयं करेंति एवं च चिंतेज्जा ॥ १ ॥ कतिया णु अहं दिषवं जावज्जीवं जहडिओ समणो । णिस्संगो बिहरिस्सं एवं च मणेण वितेज्जा ॥२॥
देसावगासियं नाम देशे अवकाशं ददातीति, पूर्व दिक्खु तं बहूणि जोयणाणि आसि, इदाणिं दिवसे दिवसे ओसारेति, जतियं जाहिहिति, राति तंपि उवारेति दिसं उवक्कमति, एस्थ दिडी विससप्पदितो, पुष्त्रं तस्स वारस जोयणाणि दिट्ठीए विसतो आसि, पच्छा तेण विज्जावातिएणं ओसारितो जोयणे ठवितो, एवं सावओ दिमित्रए बहुयं अवरज्झियातियो पच्छा देसावगासिएणं तंपि ओसारेति, अहवा विसदितो, अगदेणं एगाए अंगुलीए रुवियं विभासा । एवं सावओऽवि आवकहियातो दिसिव्वयातो दिणे दि ओसारेति जाव अज्ज घरातो ण णीमि गामणगरउज्जाणातो, अह जातितुकामो होति सो मणति - अज्ज पुरत्थिमेणं जोयणं दो तिथि जत्तिए वा जोमणे गंतुकामो, अण्णवरएणं दिवसेण तस्स आकारं करेति, किंचिमित्तविराहओति सेसाणं अविराहो, अण्णे मणंति एवं वसु जे पाणा ठविता ते पुणो दिवसे ओसारेति, एवं एगमुहुतं दिवस रातिं पंचामेव पक्वं वा । वनमिह धारे द जावनिये तुच्छड़े कार्ल ॥ १ ॥ पुढविदगजगणिमारुयवणस्सती तह तसेसु पाणेसु । आरंभमेगसो सव्वसो य सतीऍ बज्जेज्जा ॥ २ ॥ ण भणेज्ज रागदोसेहिं हसितं गवि गिह
देशावका
शिकं
||३०२ ॥

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