Book Title: Agam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra Part 02
Author(s): Rushabhdev Keshrimal Jain Shwetambar Sanstha Ratlam
Publisher: Rushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha

View full book text
Previous | Next

Page 311
________________ अत्याख्यान चूर्णिः ॥३०९॥ पुणरवि अमनट्ठी कीरति आयंबिलेणं पारइ, एत्थ संजोगा कायव्या णिवित्तीकादिसु सव्वेसु सरिसेसु विसरिसेसु य । णिपंटियं दश प्रत्यानाम नियमित, जहा एत्य काय, अइया छिन पुर्व, एत्व अवका कागवति मासे अएको गाको दिषसे चतुत्वादि अहममातिशबानानि एवतिओ छद्रेण वा हट्ठो ताव करेनिच्चिय जदावि गिलाणो होति तयारि करेति च्चेव, गवर ऊसासो धरउ । गयं पच्चक्वाणं णियंटियं घीरपुरिसपन्नतं गिपतिऽणगारा पदमसंघयणी अणीसाणा ॥१॥ इह परत्यय । अहवा न ममं| | असमस्थस्स अण्णो काहित्ति सरीर एव अपडिचद्धा, एयं पुण चाहसपुचीसु पढमसंययणेण म जिणकप्पेण य समं वोच्छिन, थेरापि तदा करन्ति । सह आगारहिं सागारं, ते आगारा उबरिं भनिहिति, तं पुण अमचट्ठी पच्चक्रवातो, ताहे आयरिएहि मण्णति-अमुर्ग गाम जातियवं, तण निवेदेतब्वं-मम अन्ज अमत्तट्ठो. जदि य समत्यो करेउ जातु य,ण तरति तो अमो वच्चउ, IRI | णत्वि असमत्थो ण वा तस्म कज्जस्स समत्यो ताहे से गुरू विसज्जेति, एवं किर तम्स तं जेमंतस्माबि अणमिलासस्स अमत्तढि| यस्स गिज्जरा जा सच्चेव पना भवति गुरुणिओएण, एवं उपूरलंभेचि विणस्पति अच्छत्तविभासा, जदि थोत्रं ताई जे णमोक्कार पोरुसिया तेर्सि विरज्जिजनि, जे वा असह विभासा, एवं गिलाणकज्जेसु अण्णतरेसु वा कारणेमु कुलगणसंघकज्जादिविमासा, |एवं जो मतपरिचायं करेति मागारकडमेतं । अणागारंणाम निम्मज्जाय,जथा एत्व आगारा न कायव्वा,एवं परिणिट्ठियंतस्स जहा नत्यि एत्य किंचिवित्ति महनरगादि आकाराण करति , अणामोगसहसकारे करज्जा, किं निमिन, कटु वा मुहे परिखवेज्जा. अणामांगण महसा चा नेण से आगारा कजति । तं कहं होज्जा, कंतारे जहा सिणवल्लीमाइपमु बत्ती न लम्मति, पडिणीएण वा पडिमिद्धं होजा, दृमिक्खं वा वट्टनि हिंडतस्मावि न लग्भनि, अहवाग जाणनि-अहं ण जीवामिति, ताहे SHAIRec

Loading...

Page Navigation
1 ... 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328