Book Title: Agam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra Part 02
Author(s): Rushabhdev Keshrimal Jain Shwetambar Sanstha Ratlam
Publisher: Rushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
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प्रत्या-मा बंदणगाणि विधीए कातुं पच्चखाणम्म उपहाइज्जति, नं कतिविहं कोरस का पच्चक्खाणाती, मष्णति, अण्णे भणनि--जा पुनि पत्याख्याख्यान
वणदिट्ठतो कतो सो इहंपि कातव्यो, जो परिभदणादाहि ण मुज्झनि सो उबवामादीहि अपत्थपरिवज्जणादीहि सोधिज्जति, एवं ननस्य भदा। चूर्णिः
| इहपि जो अतियारो आलोयणपडिकमणकाउस्सग्गेहि पा सुज्झत्ति सो तत्रेण पच्चस्खाणण य विसाधिज्जति, एतेणामिसंबंधणाग॥२७२।।
तम्स चत्तारि उणियोगद्दाराणि उत्रकमादी जहा हेवा वण्णतयाणि, तत्याधिगारो गुणधारणाए, गुणा णाम मूलगुणे, उत्तरगुणा | उरि भणिहिं तिनि । णामणिप्फण्णे पन्चक्खाणंति, तत्थ इमाणि दाराणि
पच्चरवाणं परचकवाओ० ॥ १६५२ ॥ पचक्खाणं पञ्चक्खाओ पच्चरखेयं परिसा कहणविधी फलति एते छम्मेदा, अहवा पच्चक्खाणंति आदिपदम्स इमे छम्भेदा-णामपच्चक्खाणं ठवणापच्च० दनप अदिच्छप पडिसेहप०भावपरुचक्वाणन्ति, णामठवणाओ गताओ, दयपश्वरवाणं दबणिमित्तं दधे वा, दब्बेण वा जथा स्यहरणेणे, दम्बेहि वा दब्बस्स वा दवाण वा दन्वरूवो वा जं पच्चक्खाति एवमादि दयपच्चक्खाणं । तत्थ रायसुता उदाहरणं
एगस्स रण्णा धूता अण्णम्य गणो दिण्णा, सो य मनो, ताई पितुणा आणीता, धम्म करहित्ति मणिना पासंडीणं दाणं दनि, अण्णदा कत्तिको धम्ममासोनि ममं ण खामित्ति पञ्चम्खातं, पारणए दंडिएहि अणेगाणि सत्तसहस्साणि मंसत्थाए उवणीताणि, | ताहे मचं दिज्जति, सा अंजनि, णाणाविहाणि मंसाणि दिज्जति, तत्थ साधू अरेण बोलेन्ता णिमंतिता, मतं गाहितं, मैस
इच्छंति, सा मणति-किं तुम्म कतिओ ण पूरितो, तेण मण्णंति-बावज्जीवं अम्हं कत्तिओ, किंवा कई वा, ताई तेहि पम्माला' |कहिओ मंसदोसा य, पच्छा मंसुद्धा पव्वया । एवं तए पुच्च दबाच्चक्खाणं, पच्छा भावपच्चखाणं जातति ।
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