Book Title: Agam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra Part 02
Author(s): Rushabhdev Keshrimal Jain Shwetambar Sanstha Ratlam
Publisher: Rushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
View full book text
________________
भ
कायोत्सर्ग
दोषाः
कायोत्सगो ४३ ठावितव्यं, तत्थध्ययन
चउरंगुलमुह०॥ १६४२ ॥ चउरंगुलं पदांतरं कातध्वं, उज्जुगहत्थे मुहपोली उपए रजोहरणं, दोहिवि पासे हिं दोवि
| इत्या लंपिजंति, धणं चोलपर अवलंबिता दिड्डी जुगतरे, अण्णे भणति जथा पदे पच्छति, सध्वगत्तेहिं मुक्केहि जहा काउस्सग ॥२६८॥
ठाति, वोसह जं फरवणादिपडिकमण तंग करेति, वियनो सुई वा दुहे वा सो चियत्तदेहो करेजा। दोसत्ति काउस्सग्गं च करेंतो इमे दोसे परिहरेज्जा
घोसग लता य०॥ १६४३ ॥ सीसोकंपिय० ॥१६४४ ॥ घोडशे जहा विसमेण पादेण ठाति आउंटावेत्ता १ लता बहा कंपति २ खमे वा कडे वा अवत्वं मेला माले वा सीसं अवत्वमेना ठाति ३२.परी जहा सागारीयमग्गं अच्छाएति ४ । *वह जहा जोमत्था ठानि, हेटानं मुई करोतीत्यर्थः ५ णियलियओ जया पादे मेलेता ठाति, अतिविसाले वा करेति ६ लातरं ।
अण्णुगाणि पवेति घोलपगं, उपरि वा जामि चोलं दिति ७यणति घणए अच्छाएति चोपवेषं जहा इत्थी सीतादी। द अच्छति ८ असंतुत इति वा उडित बाहिरओद्धी पण्हिताओ मेलेता अम्गपादे वाहिराहुते करेति अम्मितरउड्डी अग्गपादे मेलेचा | पहिताओ वित्यारेति ९ मंजती पाउएक ठाति १० रयहरणं जचा खलितं तथा घरेति १० वायसो जया दिहिं ममाडेति ११
छप्पतियाहिं खज्जामिति चोलपत्यं जहा कविट्ठ सहा सागारियठाणे करेउ ठाति, अण्णे मणवि-कपि जया गेण्हिता ठाति १२ | सास ओकपेनि १३ मूओ जहा हुएति अच्चतं एसो एवं गुणगुणतो अणुप्पेहिति १४ छिज्जते बलि चालेइ १५ आलावर या गणेइ संठावेद वा १५ भन्महा वा चालेड काउम्साग ठिो छिज्जते वा ममहाओ चालेर १७ वाणरी जहा मोई सँधावा एवं
॥२८॥

Page Navigation
1 ... 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328