Book Title: Agam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra Part 02
Author(s): Rushabhdev Keshrimal Jain Shwetambar Sanstha Ratlam
Publisher: Rushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha

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Page 240
________________ २५० प्रतिक्रमणा 3 बारस वरिम उवहंमतु, अण्णेमुवि अणिहुईदियविमएमु एवं चेव कालवहो मवतु । आचार्य आह-चोपग० ॥ २२६ मा. ॥ कालग्रहणं ध्ययने माणुससरे अणिद्वे कालवधा, समगति शिव्या नेसि अदि आणला पहारसहो सुणिज्जात तो कालवधी, पाचासिगा' अस्य न्याख्या-पावासिय०। जदि पाभातियकालग्गहणवेलाए पमितभज्जा पतिणो गुणा संभरंती दिवे दिवे रुवेज्जा तो तीए रोयणवे२३८॥ लाए पुन्चतरो कालो धनब्बो, अह मावि पच्चूसे रुवेज्ज ताहे गंतुं पण्णविज्जति, पण्णवणमणिच्छाए उग्घाडणकाउस्सग्गो कीरति । एषमादीणिनि अन्य व्याख्या-वीसरसा ॥२२७ मा.।। अञ्चायासण रुदंते वीसरमर भणति तं उनहणते, जं पुण महुरसई | घोलमाणं च तण्योवहणति, जाबमजंपिरंताव अब्धत्तं, ते अप्पेणवि विस्मरसरेण उवहणति, महन्तं उस्मुंभरोवणणाच उवहणति, पाभानियकालग्गहणविधी गना । इदाणि पाभातियपट्टषणविधी-गोसे दर० ॥ पच्छद्धं, गोसत्ति उदिते आदिच्चेर दिसावाला दिसालोयं करना पट्ठति, अद्धपट्टविने जदि छीताहणा मग्ग पट्ठवणं पुणो दिसावलोग करेत्ता तत्येव पट्ठति, एवं ले ततियवाराएवि । दिसाबलोयकरणे इम कारण---आतिण्णः ॥ १४९६ ॥ आइण्णपिसितंति आइण्णं पोग्गलं तं काकमादीहिं | आणियं होज्जा, महिया वा पडितुमारद्धा एवमादि,एगट्ठाणे तयो वारा उवहने हत्यसतवाहि अण्णट्ठाणं गंतुं पेहिन्ति पडिलेहिन्ति र य, पट्टतित्ति वुत्तं भवति, तत्थवि पुव्युत्तविहाणेण तिष्णि वारा पति, एवं रितियड्डाणेवि असुद्ध ततोवि हत्थसतं अण्णं ठाणं गंतु तिणि पारा पुण्युमविहाणेण पडुति, जदि सुद्ध तो करेंनि समाय, णव वारा सुतादिणा हते नियमा हतो कालो (तो) ल पढमाए पोरुसीए समायं न करेंति । पट्टविनं०।जदा पटवणाए तिमि अझयणा सम्मत्ता तदा उरि एगो सिलोगो कड़े-ट॥२३८॥ | तमो, तंमि समने पदवणं समप्पेति सुज्यति य, नितियपादो गतत्थो । सोणितति अस्प व्याख्या-आलोगवि०॥ १४९८ ॥

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