Book Title: Agam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra Part 02
Author(s): Rushabhdev Keshrimal Jain Shwetambar Sanstha Ratlam
Publisher: Rushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
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कायोत्सगाविसोषितं, इदाणिं दसणाविसोधी कातव्यत्ति, एतेगाभिसंबंधेण चउवीसत्यमो, सो पुष्धि मणितो, तस्स विसोइणनिमि काउध्ययन IP स्सग्गं करेंतो पराए भत्तीए भणनि
सवलोए अरिहंतचेइयाणं बंदणदत्तियाए ' इत्यादि, अस्य व्याख्यान केवलं चउवीसाए, जेवि सवलोए सिद्धादी ॥२७॥
में अरिहंता चेतियाणि य नाम चेव प्रतिकृतिलक्षणानि 'चिती संत्राने ' संज्ञानमुत्पद्यते काष्ठकर्मादिषु प्रतिकृतिं दृष्ट्वा, यथा अरहंत
पडिमा पसा इनि, अण्णे भणनि-अरहता तित्यगरा नेसि चौतयाणि-अरिहंततिताणि, अईत्पतिमा इत्यर्थः, नर्सि बंदनाप्रत्पर्य ठामि काउस्सयमिति योगः, तत्र चंद्यत्वात्तेषां वंदनार्थ कायोत्सर्ग करेमि, श्रद्धादिमिर्वर्द्धमानः सद्गुणसमुत्कीर्तनपूर्वकं कायोसर्गस्थानेन वंदन करोमीतियावत् एवं पूज्यत्वानेपा पूजनार्थ कायोत्सर्ग करोमि, श्रद्धादिभिर्वर्धमानः सद्गुणसमुत्कीर्तनपूर्वक कायोत्सर्गस्थाननैव पूजनं करोमीत्यर्थः, जथा कोइ गंधचुण्णवासमल्लादाहिं समभ्यर्चनं करोतीनि । एवं सबकारवत्तियार सम्माणवत्तियाएऽवि भावेतब्वं, णवरं मक्कारो जथा बत्थामरणादहि, सक्कारेणं संमं मणणं, केई मणति-बंदणादयो एम| द्विता आदरार्थ उच्चारिजाताति, बंदणादीणि किमर्थमित्याह- बोधिलाभवत्तियार बोधिलामो- संमईसणादीहिं अविप्पयोगो, सद्धर्मादाप्तिरन्यन्ये, प्रेत्य मद्धर्मावामिळधिलाभ इत्यन्ये तदर्थ, बोधिलामो किमर्थमित्याह-निरुवसागवत्तियाए, | निरुवसम्गो- मामला नदन्थ, एन्थ मिद्धार मेहार धितीए घारणाए अणुप्पहाए बमाणए ठामिकरोमि काउस्सग्ग| मिति, तत्थ सद्भा- भक्त्यनिशयः, साभिलाषना इत्यन्ये, संमत्ने तीवाभिनिवेश इत्यन्ये, तीए बमाणीए । एवं मेहाए, मेहा पडत्वं न पुनः चला, इनो नद्गुणपरिज्ञानमित्यन्ये,अन्ये पुनः मेधापत्ति आसानणाविरहिनो तच्चे य नग्गे ठिनो इति, ठिती मपोमुष्प
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SIRSACRECIES.
॥२५७||
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