Book Title: Agam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra Part 02
Author(s): Rushabhdev Keshrimal Jain Shwetambar Sanstha Ratlam
Publisher: Rushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha

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Page 231
________________ प्रतिक्रमणा ध्ययने ॥२२९॥ | सुबे काले बडवणवेलाए गंडगदितो भविस्यति । स्याद् बुद्धिः किमर्थ कालग्रहण, अत्रोच्यते- पंचविहा० ॥ १४५९ ॥ पंचविहं संजमोवधातादिर्ग, जदि कालं अनुं सझायं करेति तो चतुलहुगा, तुम्हा कालपडिलेहणार इमा सामापारी दिवसचरि मपोरुसीए | चउमागावंसेसाए कालगणभूमीओ को पडिलेनव्वा अहवा ततो उच्चारपामरणभूमी प- अधियासिया० गाथा || १४६०॥ अंतोति निवेसणस्स तिमि उच्चार अहिया सियार्थीडले आसण मज्या दूरे पडिलेहेति, अणाधियासिज्जधीडले अंतो एवं चैत्र | तिनि पडिलति, ततो थंडिला बाहि निवेमणस्स एवं चैव भवति एत्थ अहियासिया दूरयरे अणहियासिया आसण्णतरे कातव्या, पासवणेवि एतेणेव कमेण बाग्म, एते सच्चे चतुब्बीसे, अरियमस्संभितं उपउत्तो पडिलेहेता पच्छा तिमि कालग्गहणथंडिले पडिलेहेज्ज, जहणेण तत्थ इन्यमेनंतरिते, अहत्ति अणनं थंडिलपडिलेहजो गाणंतरमेव सूरो अत्थमेति, ततो आवस्सगं करेति, तस्सिमो विधी अह पुण० ।। १४६२ ।। अह इत्यनंतरे गुरुत्थमणाणंतरमेव आवस्सगं करेति, पुनर्विशेषणे, दुविहमावस्सगकरणं विसेसेति निव्वाघातं वाघातिमं च, जदि निव्वाघातं तो मध्ये गुरुमहिता आवस्वयं करेंति, अह गुरू समु धम्मं कति तो आवस्सगस्स साहर्दि सह कर णिज्जस्म बाघातो भवति, जीम काले ते करणिज्जं तं भासेतस्स वाघातो भण्णति, ततो ते गुरू निसिज्जधरो य पच्छाचरितायाजाणता उवसग्गं ठाईति सेसा तु ॥ १४६३ ॥ सेसा उ गुरु आपुच्छिता गुरुङाणस्स मग्गतो आसने दूरे अधारानिशियाए जं जस्स ठाणितं तं तस्म सहाणं तत्थ, पडिक्कर्मताण इमा ठवणा | | ० | 18 ||| गुरू पच्छा ठायंतो मज्झेण गओ सहाणे ठायति, जे वामतो ते अनंतरतन्त्रेण गंतुं सङ्काणे ठायंति, जे दाहिणयो अणंतरमचसब्वेणं चैत्र अणागतं ठानंति सुतन्यज्झरणहेतुं तत्थ य पुन्त्रामेव ठायंता 'करेमि मंते ! सामाइय' मिति सुतं करेति, जाहे पच्छा कालभूमिप्रत्युपेक्षणा ॥२२९॥ १८) لها

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