Book Title: Agam 37 Chhed 04 Dashashrutskandh Sutra Ek Adhyayan
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 12
________________ प्राक्कथन गई है। इन चारों के अतिरिक्त कहीं-कहीं चुने विषयों का प्रतिपादन भी किया गया है। नियुक्ति साहित्य के वर्ण्य-विषय के सन्दर्भ में दशवकालिकनियुक्ति के प्रतिपाद्य के सन्दर्भ में दिया गया घाटगे का अभिमत अन्य नियुक्तियों के विषय में भी काफी हद तक प्रासङ्गिक है- Therein, it is stated that usually the topics discussed in a Niryukti are : Niksepa or application (2) Nirukt or etymology; (3) Ekartha or synonyms (4) Linga or Characteristics and Pancanvaya or Pagical discussion about the various objects chosen for the purpose of comment. This list can further be supplemented with other topics as the author of the work, the cause of its writing, the people wordhy of having it and the meaning of the sutras. (I.H.Q., 11, p. 630). इस प्रकार आगमों की व्याख्या पद्धति के रूप में प्राकृत गाथा में निबद्ध प्राचीनतम कृति नियुक्ति जैनाचार्यों की भारतीय विद्या को विशिष्ट अवदान है। . जैन धर्म में आचार-शुद्धि पर अतिशय बल दिया गया है। छेदसूत्र श्रमणाचार के विधि-निषेध परक ग्रन्थों का प्रतिनिधित्व करते हैं। मुख्य रूप से इन छेदसूत्रों में श्रमणों की विविध आचार संहिताओं तथा अपवाद मार्गों का प्रतिपादन है। सामान्यत: आज इनकी संख्या छ: मानी जाती है। रचना की प्रकृति की दृष्टि से कुछ छेदसूत्र निर्वृहित आगम माने जाते हैं। निर्वृहित आगम वे ग्रन्थ हैं जिनके कर्ता ज्ञात हैं और जिस ग्रन्थ के आधार पर ये निर्मित हैं अर्थात् वे स्रोत भी ज्ञात हैं। छेदसूत्र दशाश्रुतस्कन्ध श्रुतकेवली चतुर्दश पूर्वधर आचार्य भद्रबाहु (ई०पू०प्रथम शताब्दी) प्रणीत माना जाता है। इसे दशा, आयारदसा और दशाश्रुत नाम से जाना जाता है। यह नवम प्रत्याख्यान पूर्व से निर्वृहित है। इसका वर्गीकरण ‘दसा' में किया गया है, जिनकी संख्या दस है। मूलत: गद्य में निबद्ध इसका ग्रन्थ परिमाण १३८० ग्रन्थान है, (जै०सा० बृ०इ०,भाग १, पृ०३४) इसमें बीच-बीच में पञ्चम और नवम दशा में क्रमश: १७ और ३९ गाथायें भी मिलती हैं। (नवसुत्ताणि, लाडनूं)। __ जैन परम्परा यह मानती है कि वर्तमान कल्पसत्र किसी समय इसकी आठवीं दशा रहा है। इसका ग्रन्थ-परिमाण १२५६ है। इसमें भी अधिकांश गद्य है। यत्र-तत्र प्राप्त गाथाओं की सं० २७ के आस-पास है। इस दशा तस्कन्ध पर निबद्ध नियुक्ति में १४१ गाथायें प्राप्त होती हैं (लाखाबावल संस्करण)। मूलग्रन्थ के दशा में वर्गीकरण से भिन्न नियुक्ति का वर्गीकरण 'अध्ययन' शीर्षक में है। आज उपलब्ध नियुक्तियों में यह लघुतम है।

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