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दशाश्रुतस्कन्धनियुक्ति : एक अध्ययन
बहुत आवश्यक है', नियुक्ति साहित्य का अनुवाद आरम्भ करने के मूल में है। इस अवसर पर उनको सादर नमन है। ___मैं परमादरणीय प्रो०सागरमल जैन, निदेशक, पार्श्वनाथ विद्यापीठ का बहुत
आभारी हूँ, जिन्होंने इस ग्रन्थ के अनुवाद की सहर्ष स्वीकृति ही नहीं प्रदान की बल्कि अनुवाद के समय अपने बहुमूल्य सुझाव दिये एवं सहयोग के लिए सदैव उपलब्ध रहे। इस ग्रन्थ की भूमिका के रूप में अपने उच्चकोटि के शोध लेख 'नियुक्ति साहित्य : एक पुनर्चिन्तन' को प्रकाशित करने की सहर्ष स्वीकृति देकर उन्होंने मुझ पर महती कृपा की है और इस कृति की गरिमा में वृद्धि किया है।
मैं अपने परमपूज्य गुरु प्रोफेसर सुरेश चन्द्र पाण्डे, पूर्व अध्यक्ष, संस्कृत विभाग, इलाहाबाद विश्वविद्यालय एवं प्राकृत भाषा एवं साहित्य विभाग, पार्श्वनाथ विद्यापीठ को नमन करता हूँ जिनका आशीर्वाद मेरे लिए सतत् प्रेरणा का स्रोत एवं मार्गदर्शक रहा है। नियुक्ति की सम्पूर्ण गाथाओं की संस्कृत छाया का संशोधन उनके द्वारा किया गया है।
जैन विद्या के अग्रणी विद्वान् प्रोफेसर एम०ए० ढाकी, डायरेक्टर, अमेरिकन इंस्टीच्यूट, रामनगर के भी बहुमूल्य सुझाव आशीर्वाद रूप में सदैव प्राप्त होते रहे हैं, इसे मैं अपना सद्भाग्य मानता हूँ। ___ प्राचीन ग्रन्थों का छन्द की दृष्टि से पाठ-निर्धारण के लिए उदयपुर सङ्गोष्ठी (प्रकीर्णक साहित्य मनन और मीमांसा) में प्राकृत के मूर्धन्य विद्वान् प्रो०के० आर०चन्द्र, पूर्व अध्यक्ष, प्राकृत विभाग, गुजरात विश्वविद्यालय, अहमदाबाद द्वारा प्रस्तुत शोध लेख 'छन्द की दृष्टि से प्रकीर्णकों का पाठ निर्धारण' से प्रेरणा मिली इसके लिए मैं उनका सदैव आभारी रहूँगा। ___इसी क्रम में मैं मान्य भाई डॉ.जितेन्द्र बी० शाह, निदेशक शारदाबेन चीमन भाई एजूकेशनल रिसर्च सेन्टर, अहमदाबाद के प्रति भी हार्दिक आभार व्यक्त करता हूँ। डॉ० शाह ने दशाश्रुतस्कन्धनियुक्ति के समान्तर गाथाओं की सेण्टर में उपलब्ध सूची भेजी जिससे समान्तर गाथाओं के सङ्कलन में बड़ी सुविधा मिली। वहाँ इस सूची को कम्प्यूटर से तैयार करने में डॉ० श्रीप्रकाश पाण्डेय, प्रवक्ता, पार्श्वनाथ विद्यापीठ (तत्कालीन शोधाधिकारी, शारदाबेन) की अहम भूमिका रही, अत: उन्हें भी धन्यवाद देता हूँ।
इस नियुक्ति ‘मूल' की शब्दानुक्रमणिका बनाने में मेरी बड़ी बेटी अदिति ने भी सहयोग किया अत: मैं उसे आशीर्वाद देता हूँ।