Book Title: Agam 37 Chhed 04 Dashashrutskandh Sutra Ek Adhyayan
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 10
________________ प्राक्कथन नियुक्ति साहित्य पर पूर्व में किये गये कार्यों का विवरण देने के पश्चात् नियुक्ति-संख्या, रचना-काल, रचना-क्रम और कर्ता पर विचार आवश्यक है। प्रोफेसर सागरमल जैन द्वारा लिखित शोधलेख 'नियुक्ति साहित्य : एक पुनर्चिन्तन' इस कृति की भूमिका के रूप में दिया गया है जिसमें उन्होंने उक्त सभी बिन्दुओं पर गम्भीरता से विचार किया है। इस क्रम में उन्होंने विद्वानों द्वारा प्रस्तुत विचारों और मन्तव्यों की समीक्षा प्रस्तुत करते हुए अपनी मान्यता स्थापित की है। अत: इस सम्बन्ध में चर्चा की आवश्यकता नहीं प्रतीत होती है। ___ अतः नियुक्तियों के परिचय के सन्दर्भ में नियुक्ति शब्द के व्युत्पत्यात्मक अर्थ, नियुक्तिसंरचना-स्वरूप पर जैन ग्रन्थों, शब्दकोशों एवं जैन विद्या के मनीषियों के विवरण की समीक्षा प्रस्तुत है - 'शब्दरत्नमहोदधि' (गुजराती जैन शब्दकोश) में नियुक्ति शब्द की व्युत्पत्ति निर्+युज्+क्तिन् पूर्वक बतायी गई है। वहाँ इसका अर्थ अयोग्यपना, भिन्नता और भेद प्राप्त होता है (पृ. १२११)। 'पाइअसहमहण्णवो' में नियुक्ति शब्द का अर्थ व्याख्या, विवरण और टीका उल्लिखित है (पृ. ३९६)। अर्धमागधी डिक्शनरी में इस शब्द के दो अर्थ प्राप्त होते हैं- (१) सूत्र के अर्थ की विशेष रूप से युक्ति . लगाकर घटना करना और (२) सूत्र के अर्थ को युक्ति दर्शाने वाला वाक्य अथवा ग्रन्थ। कोश ग्रन्थ जैन लक्षणावली में भी आवश्यकनियुक्ति और मूलाचार के आधार पर नियुक्ति शब्द के दो व्युत्पत्यात्मक अर्थ सङ्कलित किये गये हैं(१) 'नि' का अर्थ निश्चय या अधिकता है तथा 'युक्त' का अर्थ सम्बद्ध है। तदनुसार जो जीवाजीवादि तत्त्वसूत्र में निश्चय से या अधिकता से प्रथम ही सम्बद्ध हैं, उन निर्युक्त तत्त्वों की जिसके द्वारा व्याख्या की जाती है उसे निर्यक्ति कहा जाता है। (२) नियुक्ति में 'नि' का अर्थ निरवय या सम्पूर्ण तथा 'युक्त' का अर्थ सम्बद्ध है। तदनुसार अभीष्ट तत्त्व के उपाय को नियुक्ति जानना चाहिए। आगमटीकाकार मलयगिरि ने इसका अर्थ 'सूत्रों की व्याख्या' किया है (भाग २, पृ. ६२३)। नियुक्ति की इन व्याख्याओं से असहमत डॉ०वेबर ने सुझाव दिया कि 'निज्जुत्ति' को निरुक्ति का बिगड़ा हुआ रूप मानना चाहिए, जिसका संस्कृत रूप निरुक्ति होगा, जो वैदिक वाङ्मय में प्रसिद्ध है। लेकिन ए०एम०घाटगे ने इस सुझाव को पूर्णतया अस्वीकार कर दिया है। आपका अभिमत है कि निज्जुत्ति से निरुक्ति के संक्रमण की व्याख्या नहीं की जा सकती है तथा यह सुझाव है कि नियुक्तिकार निरुक्त और निर्यक्ति को पूर्णतया पृथक् रखना चाहते थे। दशवकालिकनियुक्ति में निरुक्त और नियुक्ति दोनों शब्दों का उल्लेख मिलता है। इसमें निरुक्त, नियुक्ति का एक अंश बताया गया है। (इ.हि क्वार्टरली, खण्ड ११, पृ. ६२८)

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