Book Title: Agam 37 Chhed 04 Dashashrutskandh Sutra Ek Adhyayan Author(s): Ashok Kumar Singh Publisher: Parshwanath Vidyapith View full book textPage 9
________________ दशाश्रुतस्कन्धनियुक्ति : एक अध्ययन साध्वी समणी कुसुमप्रज्ञा, (लाडनूं) ने इस नियुक्ति का सम्पादन किया है परन्तु अभी वह प्रकाशित नहीं है। व्यवहारभाष्य (लाडनूं १९९६) में प्राप्त प्रयुक्त ग्रन्थों की सूची से सूचना मिलती है कि उन्होंने दशवैकालिक, उत्तराध्ययन, आचाराज और सूत्रकृताङ्गनियुक्ति भी सम्पादित किया है परन्तु इनका प्रकाशन नहीं हुआ है। नियुक्ति साहित्य पर अद्यावधि किये गये कुछ प्रमुख कार्यों, शोधलेखों और निबन्धों का विवरण इस प्रकार है- प्रसिद्ध जर्मन विद्वान् Ernst Leuman की enfa Daśvaikālika Sūtra und niryukti auf ihren erzahlungsge halt untersucht und herausgegeben, Zeitschrift der Deutschen Morgenländischen Gesellschaft 46, 1892, Ueber die Āvaśyaka Literature'Leide 1895, Die Avasyaka - Erzahlungen"Leipzig 1897, युवा फ्रेंच विदुषी सुश्री नलिनी बलवीर का Avasyaka Studien; Bd 1, Stuttgart 1993, जर्मन विद्वान् B. Bolee का दो भागों में क्रमश: १९७७ और १९८८ में Studien Zum Suyagad, Wiesbaden 7791 'Materials for an edition and study of the Pinda and Ogha Nijjutties of the Svetambara tradition' Stuttgart a भागों में १९९१ और १९९४ उपलब्ध होते है। नियुक्ति पर प्राप्त लेखों में ए०एम० घाटगे के अंग्रेजी में प्रकाशित दो लेख क्रमश: दशवकालिकनियुक्ति और सूत्रकृताङ्गनियुक्ति पर 'इण्डियन हिस्टारिकल क्वार्टरली के ग्यारहवें (१९३५) और बारहवें (१९३६) खण्ड में, मुनि पुण्यविजय जी का 'छेदसूत्रकार अने नियुक्तिकार', महावीर जैन विद्यालय रजत महोत्सव स्मारक ग्रन्थ, बम्बई, १९४१, B.Bolee का Khuddaga - Niyantijjam : 'an epitome of the Jaina doctrine' (Uttarajjhaya, 6), Journal of the Bhandarkar Oriental Research Institute, Poona, 1971, Ludwig Alsdorf of 'Jaina Exegetical Literature and the History of Jaina canon, Dr. A.N. Upadhye, Vol. 1977. आचार्य देवेन्द्र मुनि, जैनागम व्याख्या साहित्य, जिनवाणी, वर्ष ३५, अङ्क १९७८, अगरचन्द नाहटा, नियुक्तियों के रचनाकाल पर पुनर्विचार आवश्यक, अमरभारती, वर्ष १६, अङ्क ४, १९७९, आदि उल्लेखनीय हैं। पार्श्वनाथ विद्यापीठ से प्रकाशित बी०के०खडबडी, Reflections on the Jaina exegetical literature, Aspects of Jainology, Vol. 3, 1991. और डॉ० श्रीप्रकाश पाण्डेय, नियुक्ति साहित्य : एक परिचय, ऐस्पेक्ट्स ऑव जैनालाजी खण्ड ५, १९९५, और प्रो. सागरमल जैन, नियुक्ति साहित्य : एक पुनर्चिन्तन, इन्द्रदिन्नसरि अभिनन्दन ग्रन्थ, विजयानन्दसूरि साहित्य प्रकाशन फाउण्डेशन, पावागढ़, १९९६, भी उल्लिखित किये जा सकते है।Page Navigation
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