Book Title: Agam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Nandi Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 17
________________ नंदी का ज्ञान किया। अध्ययन में दक्ष थे इसलिए इन्हें देववाचक पद से विभूषित किया गया। ये आध्यात्मिक ऋद्धि से संपन्न थे इसलिए इनका दूसरा नाम देवद्धिगणी क्षमाश्रमण हो गया।' नंदीसूत्र और उसके व्याख्या ग्रंथों में रचनाकाल का उल्लेख नहीं है। देवद्धिगणी का अस्तित्वकाल बीर निर्वाण की दशवीं शताब्दी और ईसा की पांचवीं शताब्दी है। जैन आगमों की पांच वाचनाएं हुई। देवद्धिगणी पांचवें वाचनाकार हैं । आचार्य मेरुतुङ्ग ने देवद्धिगणी की अध्यक्षता में होने वाली वाचना का समय वीर निर्वाण ९८० वर्ष बतलाया है बलहिपुरम्मि नयरे देवढिपमुहेण समणसंघेण । पुत्थइ आगमु लिहिओ नव सय आसीआओ वीराओ ।। देवद्धिगणी और प्रस्तुत आगम की रचना का काल वाचना से जुड़ा हुआ है। वाचना का अर्थ है अध्यापन । देश, काल और परिस्थिति के अनुसार जैसे-जैसे आगमों की विस्मृति होती गई वैसे-वैसे वाचना का प्रयोजन स्थापित हुआ। तत्कालीन युगप्रधान आचार्यों, वाचनाओं और स्थविरों ने आगमों का अध्यापन और संकलन किया। प्रथम वाचना वीर निर्वाण की दूसरी शताब्दी में पाटलीपुत्र में भीषण दुष्काल पड़ा। उस समय श्रमण संघ के छिन्न-भिन्न हो जाने से आगम ज्ञान की शृंखला टूट-सी गई । दुर्भिक्ष मिटने पर पाटलीपुत्र में श्रमण संघ एकत्रित हुआ। वहां ग्यारह अंग एकत्रित कर लिए गए, पर बारहवें अंग के ज्ञाता केवल भद्रबाहु स्वामी ही थे। वे उस समय नेपाल में 'महाप्राण ध्यान' की साधना कर रहे थे । श्रमण संघ के विशेष अनुरोध करने पर उन्होंने स्थूलभद्र को बारहवें अंग की वाचना देना स्वीकार किया। दस पूर्वो की वाचना के बाद उन्होंने किसी कारण से वाचना देना बन्द कर दिया। संघ के विशेष आग्रह से शेष चार पूर्वो की वाचना तो दी पर उनका अर्थ नहीं समझाया। दूसरी वाचना __ आगम संकलन का दूसरा प्रयास 'चक्रवर्ती सम्राट् खारवेल' ने किया। उनके सुप्रसिद्ध हाथी गुम्फा अभिलेख से यह जानकारी मिली है कि ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी के मध्य में उड़ीसा के कुमारीपर्वत पर उन्होंने जैन श्रमणों को बुलाया और मौर्यकाल में उच्छिन्न हुए अंगों को उपस्थित किया। तीसरी वाचना आगम संकलन का तीसरा प्रयास वीरनिर्वाण ८२७ और ८४० के बीच में हुआ। बारह वर्ष का भयंकर दुष्काल मिटने के बाद मथुरा में आर्य स्कंदिल की अध्यक्षता में श्रमण संघ एकत्रित हुआ। वहां कालिक सूत्र और पूर्वगत के कुछ अंशों का संकलन हुआ । यह वाचना मथुरा में हुई अतः इसका नाम माथुरी वाचना हुआ।' चौथी वाचना जब माथुरी वाचना हो रही थी उसी समय वल्लभी में आचार्य नागार्जुन की अध्यक्षता में संघ एकत्रित हुआ और श्रुत की व्यवच्छित्ति न हो इसलिए जो कुछ स्मृति में था उसका संकलन किया गया। यह वाचना 'बालभी वाचना' या 'नागार्जनीया वाचना' कहलाई। पांचवीं वाचना देवद्धिगणी ने संयोजना करके आगमों को पुस्तकारूढ किया। वल्लभी नगर में होने से यह वाचना 'वल्लभी वाचना' कहलाई। वाचनाओं के इस उल्लेख से स्पष्ट है कि वीरनिर्वाण ९८० या ९९३ में देवद्धिगणी ने वाचना दी थी। नंदी की रचना वाचना से पहले या उस समय के आसपास होनी चाहिए । १. नवसुत्ताणि, पज्जोसवणाकप्पो, सू. २२२ गा.८: संभरति' त्ति एवं संघडितं कालियसुतं, जम्हा य एतं सुत्तत्थरयणभरिए, खमदममद्दवगुणेहि संपन्ने। मधुराए कतं तम्हा मधुरा वायणा भण्णति। साय देवडिढखमासमणे कासवगोत्ने पणिवयामि ॥ खंदिलायरियसम्मय त्ति कातुं तस्संतियो अणुओगो भण्णइ । २. दशवकालिक भूमिका में चार वाचनाओं का निर्देश है। ४. नवसुत्ताणि, नंदी, गा.३६ ३. नंदी चूर्णि, पृ. ९ : खंदिलायरियप्पमुहसंघेण 'जो जं For Private & Personal Use Only Jain Education Intemational www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 ... 282