Book Title: Agam 28 Prakirnak 05 Tandul Vaicharik Sutra
Author(s): Punyavijay, Suresh Sisodiya, Sagarmal Jain
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan

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Page 15
________________ तंदुलवेयालियपइण्णयं ग्रन्थविशेषस्तन्डुलवैचारिक" अर्थात् सौ वर्ष की आयु वाला मनुष्य प्रतिदिन जितना चावल खाता है, उसकी जितनी संख्या होती है उसी के उपलक्षण रूप संख्या विचार को तंदुलवैचारिक कहते हैं । ' अन्य ग्रन्थों में तंदुलवैचारिक का उल्लेख इस प्रकार पाया जाता है (१) आवश्यक चूर्णि के अनुसार कुछ ग्रन्थों का अध्ययन एवं स्वाध्याय किसी निश्चित समय पर ही किया जाता है और कुछ ग्रन्थों का स्वाध्याय किसी भी समय किया जा सकता है । परम्परागत शब्दावली में पहले प्रकार के ग्रन्थ कालिक और दूसरे प्रकार के ग्रन्थ उत्कालिक कहे जाते हैं । यहाँ भी तंदुलवैचारिक प्रकीर्णक का उल्लेख उत्कालिक सूत्र के रूप में हुआ है। (२) दशवेकालिक चूर्णि में जिनदासगणि महत्तर ने "कालदसा 'बाला मंदा, किड्डा' जहा तंदुलवेयालिए" कहकर तंदुलवैचारिक का उल्लेख किया है । 3 (३) निशीथ सूत्र चूर्णि में भी उत्कालिक सूत्रों के अन्तर्गत तंदुल - वैचारिक का उल्लेख मिलता है ।" लेखक एवं रचनाकाल का विचार - तंदुलवैचारिक का उल्लेख यद्यपि नन्दीसूत्र आदि अनेक ग्रन्थों में मिलता है किन्तु इस ग्रन्थ के लेखक के सम्बन्ध में कहीं पर भी कोई निर्देश उपलब्ध नहीं होता है । जो संकेत हमें मिलते हैं उसके आधार पर मात्र यही कहा जा सकता है कि यह ५वीं शताब्दी या उसके पूर्व के किसी स्थविर आचार्य की कृति है । इसके लेखक के संदर्भ में किसी भी प्रकार का कोई संकेत सूत्र उपलब्ध न हो पाने के कारण इस सम्बन्ध में कुछ भी कहना कठिन है । किन्तु जहाँ तक इस ग्रन्थ के रचना काल का प्रश्न है, हम इतना तो सुनिश्चित रूप से कह सकते हैं कि यह ईस्वी सन् की ५वीं शताब्दी के पूर्व की १. ( क) पाक्षिकसूत्र वृत्ति - पत्र – ७७ (ख) अभिधान राजेन्द्र कोश, पृ० २१६८ २. आवश्यक चूर्णि - ऋषभदेव भाग - २, पृ० २२४ । ३. दशवेकालिक चूर्णि - रतलाम – १९३३, पृ० ५ । ४. निशीथ सूत्र चूर्णि - भाग ४, पृ० २३५ ॥ -- Jain Education International केशरीमल श्वे० संस्था रतलाम, For Private & Personal Use Only १९२९, www.jainelibrary.org

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